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________________ षष्ट प्रस्ताव / 265 मौजूद हूँ, यह क्या तुझे नहीं मालूम है ? तू मेरी पूजा किये बिना ही मन्त्र सिद्ध करना चाहता है ? तिसपर तूने इस सीधे-सादे राजकुमारको भी धोखेमें ला रखा है !" यह कह, उस क्षेत्राधिपने उसे मार डालनेकी इच्छाले सिंहनाद किया। उसे सुनते ही योगीके तीनों चेले पृथ्वीपर गिर पड़े। यह देख, कुमारने क्षेत्राधिपसे कहा,-"अरे! तू व्यर्थ क्यों गर्जन कर रहा है ? यदि तुझमें शक्ति हो, तो पहले मेरे साथ युद्ध कर।" यह कह, उसे शस्त्र-रहित देख कर, कुमारने भी अपने हाथसे खड्ग फेंक दिया। इसके बाद दोनों प्रचण्ड भुज-दण्डसे युद्ध करने लगे। अन्तमें युद्ध करते हुए बलवान कुमारने उस क्षेत्रपालको अपने बाहुबलसे परास्त कर दिया। इससे प्रसन्न होकर उसने कहा, "हे महानुभाव ! मैं तुमसे हार गया और तुम्हारे साहसको देख· कर प्रसन्न हो गया हूँ, इसलिये तुम्हारी जो कुछ इच्छा हो, मुझसे मांगो।" यह सुन, कुमारने उसे अपने भुजबन्धनसे अलग कर कहा,। “यदि तुम मेरे ऊपर प्रसन्न हो, तो इस योगीकी इच्छा पूरी कर दो।" यह सुन, क्षेत्रपतिने कहा,--"इच्छित फलको देनेवाला यह महा__ मन्त्र तो तुम्हारे प्रभावसे इसे सिद्ध हो ही गया है। अब तुम कुछ अपनी इच्छित वस्तु माँगो, जिसे मैं तुम्हें दूं; क्योंकि देवताका दर्शन कभी निष्फल नहीं जाता।" यह सुन, कुमारने कहा,—“यदि ऐसी बात है, तो तुम ऐसा कर दो, जिससे मेरी पत्नी कनकवती मेरे वशमें हो जाये।" यह सुन, क्षेत्रपतिने ज्ञानसे उसका स्मरण कर कहा,-"वह स्त्री तुम्हारे वशकी हो जायेगी और तुम मेरे प्रभावसे अपनी मनचाही कर सकोगे।” इस प्रकार उसे वर-दान देकर वह क्षेत्रपाल अदृश्य हो गया। इसके बाद मन्त्रकी सिद्धि कर, उस योगीन्द्रने कुमारकी प्रशंसा करते हुए कहा, “हे कुमार ! तुम समय पड़ने पर मुझे याद करना।" यह कह, योगी अपने शिष्योंके साथ अपने स्थानको चले गये। इसके बाद अपना शरीर मार्जन कर घर आये और वीरोंका बाना उतारकर सो रहे / P.P.AC. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
SR No.036489
Book TitleShantinath Charitra Hindi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhavchandrasuri
PublisherKashinath Jain
Publication Year1924
Total Pages445
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size355 MB
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