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________________ षष्ट प्रस्ताव। nawwarmar Goo DOGooo GOO.OPOGola NIOS गुणधर्म कुमारकी कथा H0 Roo.0:005OPDOHORS MAJAL Meka / नय। इसी भरत-क्षेत्रमें शौर्यपुर नामका एक नगर है। उसमें संसारप्रसिद्ध राजा दृढ़धर्म राज्य करते थे। उनकी स्त्रीका नाम शील-शालिनी था, जो यथानाम तथा गुणकी कहावतको सच साबित कर रही थी। इन्हींके गर्भसे राजाके गुणधर्म नामक एक राजकुमार उत्पन्न हुए थे। क्रमशः राजकुमार बाल्यावस्थाको पारकर, कलाभ्यास करनेमें लगे और कुछही दिनोंमें बहत्तर कलाओंमें निपुण होकर युवावस्थाको प्राप्त हुए। रूप, लावण्य और गुणके कारण वे जगत्को आनन्द देनेवाले बन गये। कुमार बड़े ही भाग्यशाली, सरल-स्वभाव, शूर-वीर, अपूर्वभाषण करनेवाले, प्रिय वचन बोलनेवाले, दृढ़ मैत्रीवाले और मनोहर रूपवालेअर्थात् सर्वगुणसम्पन्न हो गये। . वसन्तपुर नामक नगरमें ईशानचन्द्र राजाके कनकवती नामकी एक अति रूपवती पुत्री थी। जब वह युवावस्थाको प्राप्त हुई, तब राजाने उसके लिये स्वयंवर रचाया। स्वयंवर मण्डपमें गुणधर्म कुमार तथा अन्यान्य बहुतसे राजा और राजकुमार आये। सब राजाओंको रहनेके लिये महल दिये गये। एक दिन गुणधर्म कुमार स्वयंवर-मण्डप देखने गये। वहाँ राजकुमारी कनकवती भी आयी हुई थी। राजकुमारीने कुमारको और कुमारने राजकुमारीको देख लिया। कुमारने उसकी नज़रोंसे ही समझ लिया, कि वह उन पर अनुरक्त है। इसके बाद वह राजकुमारी आनन्दसे कुमारकी ओर देखतो हुई अपने घर चली गयी। कुमार भी परिवार सहित अपने डेरे पर चले आये। इसके बाद घर पहुँचकर कुमारीने कुमारके पास एक दासीको भेजा। उसने कुमारके पास आकर उन्हें एक चित्रपट दिया। उसमें कुमारने एक राजहंसिनीका चित्र अङ्कित हुआ देखा / साथही उसके नीचे यह श्लोक भी लिखा हुआ देखाः a ( PP.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
SR No.036489
Book TitleShantinath Charitra Hindi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhavchandrasuri
PublisherKashinath Jain
Publication Year1924
Total Pages445
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size355 MB
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