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________________ 288 श्रीशान्तिनाथ चरित्र / wwwwwwwwwwwwwindimaane खामीके केवलज्ञान उत्पन्न होनेका समाचार कह सुनाया। यह सुन, चक्रायुधने हर्षित होकर उसे उचित इनाम दिया और बड़े आनन्दके साथ उद्यानमें चले आये। तदनन्तर विधि-पूर्वक समवसरणमें प्रवेशकर, श्री जिनेन्द्रकी तीन बार प्रदक्षिणा कर, उन्हें प्रणाम और स्तुति कर, वे दोनों हाथ जोड़े हुए उचित स्थान पर बैठ रहे। उस समय श्रीभग. वान्ने मधुक्षीराश्रव-लब्धिवाली तथा पैंतीस अतिशयवाली वाणीमें धर्मदेशना कह सुनायी-उसीके साथ उन्होंने चक्रायुधको उद्देशकर कहा, "हे राजन् ! तुमने अपने बाहुवलसे बाहरी शत्रुओंको जीत लिया है; . परन्तु शरीरके अन्दर रहनेवाली पाँचों इन्द्रियोंको-जो बड़े भारी शत्रु हैं - नहीं जीता। इसीसे उनके शब्द, रूप, रस, गन्ध और स्पर्श आदि विषय बड़े-बड़े अनर्थ करते हैं। देखो -शिकारीके संगीतको सुननेके लिये कान खड़े किये हुए हरिणकी जान, इसी कर्णेन्द्रियके वशमें होनेके कारण चली जाती है। पतङ्ग, चक्षुइन्द्रियको वशमें नहीं रखनेके कारण दीप-शिखाको सोना समझकर तत्काल उसमें कूद कर मर जाते हैं। माँसके टुकड़ेका रस चखने में भूली हुई मछली, रसनेन्द्रियके वशमें होकर, अगाध जलमें रहने पर भी मछुएके जालमें फंस जाती है। हाथोके मदकी सुगन्धले लुब्ध हुए भौंरे, घ्राणेन्द्रियके वशमें न होनेके कारण, मरणको प्राप्त होते हैं और स्पर्शेन्द्रियके वशमें पड़ा हुआ हाथी पराधीनताके दुःखों में आ पड़ता है। हस्तिनीय शरीरका स्पर्श करनेमें भूला हुआ हाथी बन्धन तथा तीक्ष्ण अङ्कशके प्रहारको सहन करता है। जो सत्पुरुष होते हैं, वे इन विषयोंको तत्काल त्याग देते हैं। पूर्व समयमें अपनी प्रियाका ऐसा स्वरूप देखकर गुणधर्मकुमारने विषयोंका त्याग कर दिया था / " यह सुन, चक्रायुध राजाने, भक्तिसे नम्र होकर, स्वामीसे पूछा,"हे भगवन् ! वह गुणधर्मकुमार कौन थे? और उन्होंने किस प्रकार विषयोंका त्याग किया था ? इसकी कथा कृपाकर--कह सुनाइये।" इस पर श्रीजिनाधीशने कहा,-"सुनो, P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
SR No.036489
Book TitleShantinath Charitra Hindi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhavchandrasuri
PublisherKashinath Jain
Publication Year1924
Total Pages445
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size355 MB
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