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________________ - 286 . श्रीशान्तिनाथ चरित्र / तप करते हुए, हज़ार राजाओं के साथ सर्वविरति-सामायिकका पाट' करते हुए, चारित्र ग्रहण कर लिया। " * * इसके बाद प्रभुने वहाँसे विहार किया। मार्गमें देवों, मनुष्यों और तिर्यञ्चोंका उपसर्ग सहन करते हुए श्रीजिनेश्वर पारणके दिन एक प्राममें आ पहुंचे। वहां उन्होंने सुमित्र नामक गृहस्थके घर पारणा किया। श्रीजिनेश्वर को तीन ज्ञान तो गर्भ में ही उत्पन्न हो चुके थे। अबके दीक्षा लेनेके बाद चौथा मनःपर्यवशान भी उत्पन्न हो आया / इस प्रकार चारों ज्ञानके धारण करनेवाले स्वामी पुर, ग्राम और आकर आदि स्थानों में मौनावलम्बन किये हुए विचरण करने लगे। इस प्रकार आठ महीनेका छद्मस्थपर्याय पालन कर, पृथ्वीमण्डल पर विहार करतेफिरते हुए जगद्गुरु हस्तिनापुरके सहस्राम्रवन नामक उद्यानमें पधारे और पत्रपुष्पादिसे युक्त नन्दिवृक्षके नीचे कायोत्सर्ग किये हुए टिक रहे। यहाँ छट्टतप कर, श्रेष्ठ शुक्लध्यान करते हुए प्रभुको, पौष शुक्ल नवमीके दिन, जब चन्द्रमा भरणी नक्षत्र में था, तयं चारों घातीको का क्षय हो जानेके कारण निर्मल केवलज्ञान उत्पन्न हुआ। - उसी समय आसन कॉपनेसे प्रभुके केवलज्ञान उत्पन्न होनेका हाल मालूमकर, चारों निकायके देवगण वहाँ आये और श्रीजिनेश्वरके लिए सुन्दर समवसरणकी रचना की। उन्होंने : पहले हवा चलाकर एक योजन प्रमाण पृथ्वीसे अशुभ पुद्गलोंको दूर किया। इसके बाद गन्धो. एकको वृष्टि कर उन्होंने धूलकी शान्ति कर दी। उनके पश्चात् व्यन्तरदेवोंने मणिरत्नमय भूपीठकी रचना की और उसपर घुटने बराबर फूलोंकी वर्षा कर डाली। उस पर वैमानिक देवोंने भीतरका रत्नमय / गढ़ बनाया, जिसके कँगूरे मणियोंके बने हुए थे। इसके बाद ज्योतिषी देवोंने रत्नोंके कंगूरोंवाली सुवर्णमय गढ़ तैयार किया। तदनन्तर / भुवनपति देवताओंने एक तीसरा सुनहरे कँगूरोंवाला चाँदीका गढ़ रचा। प्रत्येक गढ़में तोरण सहित चार-चार दरवाजे लगे। पहले गढ़में स्वामीके शरीरसे बारहगुना ऊँचा अशोक-वृक्ष बनाया गया / P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
SR No.036489
Book TitleShantinath Charitra Hindi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhavchandrasuri
PublisherKashinath Jain
Publication Year1924
Total Pages445
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size355 MB
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