SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 309
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ षष्ठ प्रस्ताव। . 285 धर्मका प्रवर्तन करो।" यह सुनकर प्रभुने भी जान लिया कि मेरी दीक्षाका समय आ गया। उसी समयसे एक वर्षतक उन्होंने याचकोंको मुंहमांगा दान दिया और चक्रायुध नामक अपने पुत्रको राज्यपर बैठाकर दीक्षा ग्रहण करनेको उत्सुक हुए। उसी समय सब देवेन्द्रोंके आसन काँप उठे और वे भी श्रीशान्तिनाथके दीक्षा-कल्याणकमें आये / इसके बाद छत्र-चवरसे सुशोभित प्रभु सर्वार्थ नामकी शिविका (पालकी) पर सवार हुए। उस शिविकाको पहले मनुष्योंने,फिर सुरेन्द्रोंने,असुरेन्द्रोंने, गरुड़ेन्द्रोंने तथा नागेन्द्रोंने ढोया। पूरबमें देव, दक्खिनमें असुर, पश्चिममें गरुड़ और उत्तरमें नागकुमार उस शिविकाको ढोथे चलते थे। भगवानके आगे-आगे नट लोग नाटक करते चलते थे, मागध लोग जय-जय शब्द कर रहे थे, और कितनेही मनुष्य प्रभुके ऐश्वर्यादिक सद्गुणोंको अनेक छन्दों और रास-प्रबन्धों में वर्णन करते चले जा रहे थे। कितनेही लोग मृदङ्ग, सिंघा आदि बाजे ऊँचे स्वरसे बजा रहे थे। हाहा और हूहू नामके देव गन्धर्व सातों स्वरों, तीनों ग्रामों, तीनों मूर्च्छनाओं, लय और मात्रा सहित श्रेष्ठ सङ्गीत गान कर रहे थे। रम्भा, तिलोत्तमा, उर्वशी, मेनका और सुकेशिका प्रभुके आगे-आगे हावभाव और विलासके साथ मनोहर नृत्य कर रही थीं। हाव-भावादि लक्षण इस प्रकार होते हैं:-हाव अङ्गकी चेष्टाको कहते हैं और भाव चित्तसे उत्पन्न होता है। विलास आँखोंसे उत्पन्न होता है और विभ्रम भृकुटिसे उत्पन्न होता है। इस प्रकारके साज-सामानके साथ मन्द-मन्द गतिसे नगरके बाहर निकलकर, प्रभु सहस्त्राभ्रमन नामक उद्यानमें आकर शिविकासे उतर पड़े और सब आभूषणोंको उतार कर, दाढ़ी-मूंछ और सिरके बाल पाँच मुट्ठियोंसे नोंच लिथे। उन केशोंको इन्द्रने अपने वस्त्रके. छोरमें * बाँध लिया जौर बड़ी धूम-धामसे क्षीर-सागरमें ले जाकर डाल दिया। इसके बाद जेठ महीनेकी कृष्ण-चतुर्दशीको, जब चन्द्रमा भरणी-नक्षत्रमें P.P. Ac. Gunratnasuri M.S.. Jun Gun Aaradhak Trust
SR No.036489
Book TitleShantinath Charitra Hindi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhavchandrasuri
PublisherKashinath Jain
Publication Year1924
Total Pages445
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size355 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy