________________ "" षष्ठ प्रस्ताव / 281 . और अत्यन्त मुलायम थे। उनकी साँससे कमलकीसी सुगन्ध आती थी और उनके सारे शरीरकी कान्ति चमकते हुए सोनेके समान थी। इस 2 प्रकार श्रेष्ठ अङ्गोवाले स्वामीके अङ्ग-प्रत्यङ्गमें उत्तम लक्षण विराजमान थे। : ऐसे लक्षणोंसे युक्त, तीनों प्रकारके ज्ञानसे भरे हुए, समग्र ज्ञानविज्ञानके पारगामी और सब मनुष्योंमें उत्तम भगवान् क्रमशः बढ़ते हुए युवावस्थाको प्राप्त हुए, उस समय पिताने अनेक रूपवती तथा कुल• वती बालिकाओंसे उनका विवाह कर दिया। उन सब स्त्रियोंमें यशोमती नामकी पटरानी भगवान्की अतिशय प्रेम-पात्री और सारे अन्तःपुरमें प्रधान हो गयीं / पचीस हज़ार वर्ष व्यतीत होनेपर पिताने स्वामीको राज्यपर बैठाया। इसके बाद दूढ़रथका जीव, सर्वार्थ-सिद्ध विमानसे च्युत हो, यशोमतीके गर्भमें पुत्र-रूपसे अवतीर्ण हुआ। उस समय रानी यशोमतीने स्वप्नमें चक्र देखा। क्रमशः समय पूरा होनेपर शुभ मुहूर्तमें उनके पुत्र उत्पन्न हुआ। पिताने खूब धूमधामसे उत्सव कर, पुत्र का नाम स्वप्नके अनुसारही चक्रायुद्ध रखा / क्रमश: बढ़ता हुआ वह पुत्र, सब कलाओंका अभ्यास कर, युवावस्थाको प्राप्त हुआ। तब उन्होंने उसका विवाह अनेक राजकुमारियोंके साथ कर दिया। .. एक दिन राजा शान्तिनाथकी आयुधशालामें सूर्य की सी कान्तिवाले हज़ार आरोंवाला, और हज़ार यक्षोंसे अधिष्ठित बड़ा ही उत्तम चक्ररत्न उत्पन्न हुआ। उस समय आयुधशालाके रक्षकोंने प्रभुको उस चक्र-रत्नकी उत्पत्तिका समाचार जा सुनाया। सुनकर स्वामीने उसके उपलक्षमें अष्टाहिका-महोत्सव किया। इसके बाद वह चक्र आयुधशालासे बाहर निकलकर आकाशमार्गकी ओर चला / उसके पीछे-पीछे राजा शान्तिनाथ * भी सैन्य सहित चल पड़े। चक्रके पीछे जाते-जाते पहले पूर्व दिशामें मागध-तीर्थके पास समुद्रका किनारा मिला। वहाँ सेनाका पड़ाव डाल, मागध-तीर्थके सामनेही शुभ आसन मारकर चक्रवर्ती बैठ रहे। उसी समय उनके प्रभावसे जलके अन्दर अधोभागमें-बारह योजन दूरपर रहनेवाले nratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust