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________________ 280 श्रीशान्तिनाथ चरित्र। कर दे डाले। इसके बाद हर्षकी उमङ्गमें राजाने उन्हें इतनी सोना-चांदी इनाममें दी, कि उनकी सात पीढ़ियों तक खर्च करनेसे भी न घटे। इसके बाद हर्षित राजाने, जिसने जो मांगा, उसे वही दे डाला, प्रजाका कर माफ़ कर दिया, माण्डवीमें लिया जाने वाला द्रव्य छोड़ दिया और सारे नगरमें गाना-बजाना, धवल-मङ्गल और बधाइयोंके महोत्सव ज़ारी करा दिये / इसी तरह मंगलाचार होते रहे। इतने में बारहवाँ दिन आ लगा / उस दिन राजाने अपने सब बन्धुओं को अपने यहाँ बुलवाया और उन्हें भाँति-भाँतिके भोजन करा, उनके सामने ही कहा,-“हे सजनो! जिस दिनले मेरा यह पुत्र माताके गर्भ में आया, उसी दिनसे सारे नगरसे / महमारी आदि उपद्रव दूर होकर शान्ति विराजमान हो गयी, इसलिये मैं इस पुत्रका नाम 'शान्ति' रखता हूँ।" यह सुन, सबने यह नाम पसन्द किया। शक्रइन्द्रने भगवान के अंगूठेमें अमृत डाल दिया था, उसीको पी-पी कर स्वामी, रूप-लावण्यकी सम्पत्ति-सहित, वृद्धिको प्राप्त होने लगे। - अब कर्त्ता स्वामीके शरीरका वर्णन करता है / वह इस प्रकार है:स्वामीके हाथ-पैर के तलुधे लाल और शुभ लक्षण-युक्त थे। उनके चिकने, लाल और ऊँचे-ऊंचे नख आरसी (दर्पण) की तरह मालूम पड़ते थे; दोनों पैर कछुएकी तरह ऊँचे जान पड़ते थे, जंघाएँ मृगकी जंघाके समान थी। दोनों जांघे हाथीकी सूंड़की तरह गोल और पुष्ट थीं / उनकी कमर बड़ी चौड़ी थी। दक्षिणावर्त नाभि बड़ी गम्भोर थी। उदर वज्रकी तरह पतला था। उनका वक्षःस्थल नगरके दरवाज़ेकी तरह विशाल और सूढ़ / था उनकी दोनों भुजाएँ नगरकी अर्गलाके समान लम्बी थीं। उनकी गरदन शङ्ख की तरह सुन्दर थी। उनके होंठ बिम्बके-फलके समान लाल-लाल थे। उनके दांत कुन्दकी कलियोंके समान थे। उनकी मासिका सजनोंके आचरणकी भांति ऊँची तथा सरल थी। उनके / नेत्र कमल-पत्रकी भौति थे। उनका ललाट अष्टमीके चाँदकासा दिखाई देता था। उनके दोनों कान हिंडोलेके आकारके थे / उनका मस्तक छप्रसा शोभित हो रहा था। उनके बाल चिकने, भौरेकी तरह का P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. . . Jun Gun Aaradhak Trust
SR No.036489
Book TitleShantinath Charitra Hindi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhavchandrasuri
PublisherKashinath Jain
Publication Year1924
Total Pages445
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size355 MB
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