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________________ AND Zee ATRO आजसे बहुत पहले, भरत-क्षेत्रमें, युगादि जिनेश्वरके कुरु नामके एक पुत्र थे। उन्हींके नामसे कुरु नामका एक देश प्रसिद्ध है। उन्हीं कुरु राजाके हस्ती नामका एक पुत्र हुआ, जिसने बड़ी बड़ी हवेलियों और हाट-बाज़ारोंकी श्रेणीसे शोभित, ऊँचे-ऊँचे सुन्दर महलोंकी श्रेणीसे मनोहर मालूम पड़ता हुआ, प्राकारों तथा गोपुरोंसे (दरवाजोंसे) अलंकृत, हस्तिनापुर नामका एक अपूर्व नगर बसाया था। उस नगरमें क्रमसे बहुतसे राजा हुए, जिनके पीछे विश्वसेन नामक एक राजा हुए। उनकी पवित्र लावण्यवती अचिरा नामकी पत्नी जगत् भरमें प्रसिद्ध थी। उनके साथ रहकर राजा मनोवाञ्छित सुख भोग रहे थे। . एक दिन, भादों बदी सप्तमीको, चन्द्रमा जब भरणी नक्षत्रमें था और अन्य सभी ग्रह शुभ-स्थानमें थे, उसी समय रातको मेघरथका जीष आयुर्भय होने पर, सर्वार्थ-सिद्ध विमानसे च्युत हो, अचिरादेवीकी कोखरूपी सरोवरमें राजहंसके समान अवतीर्ण हुआ। उसी समय सुख-सेज पर पड़ी, कुछ जगी और कुछ सोयी हुई अविरादेवीने हाथी, वृषभ, सिंह, लक्ष्मीको अभिषेक, पुष्पमाला, चन्द्र-सूर्य, ध्वजा, पूर्णकुम्भ, सरोवर, सागर, विमान, रत्न-राशि और निर्धूम-अग्नि-ये चौदह स्वप्न देखे / उसी समय रानीकी नींद टूट गयी और वे हर्षसे प्याप्त हो, राजाके पास जा पहुँची तथा जय-विजय शब्दों द्वारा उन्हें बधाइयाँ देने लगीं। इसके बाद स्वामीकी आशासे अच्छे-भले आसन P.P. Ac.-Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
SR No.036489
Book TitleShantinath Charitra Hindi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhavchandrasuri
PublisherKashinath Jain
Publication Year1924
Total Pages445
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size355 MB
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