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________________ पञ्चम प्रस्ताव / 273 चारित्रका पालन कर, विविध तपस्याएँ कर, अन्समें समाधि-मरण पाकर वे देवलोकको चले गये। घहाँसे च्युत हो, मनुष्य जन्म पा, समग्र कर्मोका क्षय कर, वत्सराजका जीव मोक्षको प्राप्त होगा। है मेघरथ राजा! मैंने पहले जिस शूर राजाका नाम लिया था, यह यही वत्सराज था, जिसने विपत्तिके दिनोंमें भी पूर्व-पुण्यके प्रभाषसे सुख पाया। वत्सराज-कथा समाप्त / / इसके बाद मेघरथ राजाको चारित्र ग्रहण करनेकी इच्छा हुई। इसीलिये जिनेश्वरको प्रणाम कर, वे अपने घर गये और अपने भाई ढ़रथसे बोले,-"भाई ! तुम अब इस राज्यको चलाओ-मैं चारित्र ग्रहण करूँगा।' यह सुन, गुढ़रथने कहा,-"मैं भी तुम्हारे साथही प्रत अङ्गीकार करूँगा।" तब मेघरथ राजाने अपने पुत्र मेघसेनको गद्दी पर बैठा दिया और दृढ़रथके पुत्र रथसेनको युवराजकी पदवी प्रदान की। इसके बाद चार हज़ार राजाओं, सात सौ पुत्रों और अपने भाईके साथ उन्होंने श्री जिनेश्वरसे दीक्षा ले ली। इसके बाद राजर्षि मेघरथने अपने शरीरकी सारी ममता त्यागकर परिषह सहन करना आरम्भ किया। इसके बाद पांच समिति और तीन गुप्ति स. हित श्रीघनरथ जिनेश्वर बहुतेरे जीवोंका प्रतिबोध कर, पृथ्वी तलपर विहार कर सर्व-कर्म रूपी मलका नाश कर, मोक्षको प्राप्त हुए। मेघरथ राजर्षि ने बीस स्थानकोंकी आराधनासे मनोहर तीर्थङ्करका नाम-कर्म उपार्जन किया। बीस स्थानककी आराधना इस प्रकार है-अरिहन्त, सिद्ध, प्रवचन, गुरु. स्थविर, साधु, बहुश्रुत और तपस्वी. इन आठोका वे निरन्तर वात्सल्य करते थे। ज्ञान, दर्शन, विनय, - आवश्यक और शीलवत - इन पांचोंका निरन्तर उपयोग करते हुप धे अतिचार-रहित पालन करते थे। क्षणलव तप, दान, वैयावश्च और समाधिसे वे युक्त रहते थे। अपूर्व ज्ञामको ग्रहण करने में वे सदा प्रयत्नशील रहते थे। घे श्रुतज्ञानकी भक्ति करते थे और प्रषचनकी P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
SR No.036489
Book TitleShantinath Charitra Hindi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhavchandrasuri
PublisherKashinath Jain
Publication Year1924
Total Pages445
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size355 MB
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