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________________ श्रोशान्तिनाथ चरित्र। बनवाये, अनेक जिनेश्वरों की प्रतिमाएं स्थापित करवायीं और जिनचैत्योंमें अष्टाहिका उत्सव आदि अनेक धर्म-कृत्य करवाये। इसी प्रकार वे निरन्तर धर्मकार्योंमें मग्न रहते थे। कुछ दिन बीतने पर फिर ... भाचार्य वहाँ आये। : उस समय राजा भी उनकी धन्दना करने गये। उनके चरण-कमलोंको प्रणाम कर, धर्म-देशना सुन, उन्होंने गुरुसे कहा, .. “हे प्रभु! मैंने पूर्व भवमें कौन ऐसा : कर्म किया था, जिससे मुझे इतनी विपत्तियोंके बाद सम्पत्ति प्राप्त हुई ?" गुरुने कहा,-" राजन् ! सुनो-- . . . . . . : "इसी जम्बूद्वीपके भरक्षेत्रमें घसन्तपुर नामका एक नगर है। उसी नगरमें तुम शूर नामके राजा थे। राजा शूर बड़े ही सरल-स्वभाव, . क्षमावान्, दाक्षिण्य-पूर्ण, निर्लोभी और देव गुरुकी पूजामें तत्पर थे। इस प्रकार सब गुणोंके आधार, शीलवान् और दान-धर्ममें तत्पर थे राजा पृथ्वीका पालन कर रहे थे। उनकी पटरानीका नाम शूरवेगा था और वह विद्याधर-कुलमें उत्पन्न हुई थी। राजाने रतिचूला नामकी / एक और राजकुमारीके साथ विवाह किया था। उन पर आसक्त रहते हुए भी राजाने दोनों प्रियतमाओंका त्याग कर दिया। इसके बादका सारा वृत्तान्त व्यन्तरी-देवीने तुमसे कहा ही था और तुमसे गन्धवाह. गति राजाकी दोनों कन्याओंका विवाह करा दिया था। हे महा भाग्य. घान् ! वही तुम इस भवमें भी राजकुमार हुए। दानादि धर्म करनेके कारण ही तुम्हें भोगकी सारी सम्पत्तियाँ प्राप्त हुई हैं, पूर्व भव में राज्य करते हुए तुमने कुछ अन्तराय-कर्म कर दिया था, इसीलिये इस भवमें पहले कुछ दिनों तक राज्य-भ्रष्ट होकर तरह-तरहके दुःख भोगने पड़े।" * इस प्रकार गुरुके मुखसे अपने पूर्व भवका हाल. सुन, राजा वत्सराजको जातिस्मरण हो आया और उन्होंने गुरुकी : बातोंको सच . समझ लिया। इसके बाद विशेष पुण्य उपार्जन करनेके लिये उन्होंने दीक्षा लेनी चाही। इसीलिये घर आ, अपने पुत्र श्रीशेखरको राज्य दे, चारों स्त्रियोंके साथ उन्होंने चारित्र ग्रहण कर लिया। भली भांति P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
SR No.036489
Book TitleShantinath Charitra Hindi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhavchandrasuri
PublisherKashinath Jain
Publication Year1924
Total Pages445
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size355 MB
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