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________________ पञ्चम प्रस्ताव / 231 आप हमें रहनेके लिये कहीं थोड़ासा स्थान दे दें, तो हम आपको शरणमें सुखसे रहें / " यह सुन, सेठने उदारता और परोपकार-बुद्धिसे प्रेरित होकर उन्हें एक छोटीसी कोठरी दिखलाते हुए कहा,-"देखो, तुम लोग यहीं रहना , पर तुम इसका कुछ भाड़ा दोगी या नहीं ? इसपर उन्होंने कहा,-"सेठजी ! मेरे पास भाड़ा देनेके लिये तो कुछ भी नहीं है, परन्तु हम दोनों यहने आपके घरके सब काम-धन्धे किया करेंगी। उसके बदले में आप हमें खानेको दे दिया कीजियेगा। बड़े-बड़े घरोंमें तृण भी काममें आ जाते हैं, फिर मनुष्योंकी क्या बात है ?" ....... . इसके बाद वे तीनों उसी सेठके आश्रयमें रहने लगे। दोनों बहने सेठके घरके कुल काम-धन्धे करने लगी और वत्सराज उसके बछड़ोंको चरानेके लिये जंगलमें ले जाने लगे। एक दिन वे इसी तरह बछड़ोंको . घरा रहे थे, और एक वृक्षकी छायामें बैठे हुए थे। इसी समय कसरत करते हुए कुछ राजकुमारों की आवाज़ उनके कानमें पड़ी और वे कौतहलके मारे उनका खेल देखने चले गये। उन राजकुमारोंमेंसे यदि किसीका वार ज़रा भी खाली जाता, तो पास खड़े हुए वत्सराजका मुँह मलिन हो जाता और यदि किसीका धार ठीक ठिकानेपर बैठता, तो वे खुश होकर उसकी प्रशंसा करने लगते और "क्या खूब !" कह उठते थे। उनकी इस हरकतको देख, कलाचार्यने सोचा,-"यह तो कमसिन होते हुए भी शस्त्र-कलामें निपुण सा मालूम पड़ता है। ऐसा विचार कर. कलाचार्यने पूछा,-"पुत्र ! तुम कहाँसे आये हो ?" घत्सराजने कहा, "हे तात ! मैं तो एक परदेशी हूँ / " आचार्यने कहा,"अच्छा, एक बार अपने हाथमें शस्त्र लेकर मुझे अपनी शस्त्रकुशलता तो दिखलाओ।" यह सुन, मौका अच्छा देखकर वत्सराजने अपनी * शस्त्रकला उनपर प्रकट की। इतने में उन राजकुमारोंके भोजनकी सामग्री वहाँ आयी। सबके सब वहीं खाने बैठ गये। वत्सराजके कलाभ्यासको देखकर सन्तुष्ट राजकुमारोंने उन्हें भी बड़े आग्रहसे अपने साथ दी खिलाया। . . . . . . P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
SR No.036489
Book TitleShantinath Charitra Hindi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhavchandrasuri
PublisherKashinath Jain
Publication Year1924
Total Pages445
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size355 MB
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