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________________ 230 श्रीशान्तिनाथ चरित्र।। जाना बड़ा ही कठिन है। इसके सिवा भैया देवराज भी तो तुम्हारे ही पुत्र हैं। इसलिये तुम इन्हींके पास सुखसे पड़ी रहो।" रानीने कहा,-.. "बेटा! मैं तो तेरे ही साथ चलँगी। जो देवराज तेरी बुराई करता है, उससे मेरा कुछ भी प्रयोजन नहीं है / " यह कह, धारिणीदेवी भी वत्सराजके साथ जानेको तैयार हो गयी। देवराजने उन लोगोंके लिये रथ या और किसी सवारीका प्रबन्ध नहीं किया। इसीलिये देवी भी वत्सराजके साथ-साथ पैदल ही चल पड़ी। उस समय राजाने लोगोंको हुक्म दिया, कि जो कोई वत्सराजके साथ जायेगा, यह मारा जायेगा। यह कह, उन्होंने उनके परिवारको भी उनके साथ जानेसे रोक दिया / उस समय सारे नगर में हाहाकार मच गया। सारे नगरमें ऐसा एक भी मनुष्य नहीं था, जिसे वत्सराजको दूसरे देशमें जाते देख, * दुःख नहीं हुआ हो / लोग वत्सराजके सौभाग्यके निमित्त कहने लगे, "आजही यह नगर अनाथ हो गया.-मानों राजा वीरसिंहकी आजही मृत्यु हुई है। अब ज़रूर यहाँकी प्रजापर आफ़त आयेगी।” प्रजावर्गकी ऐसी-ही ऐसी बातें सुनते हुए वत्सराज नगरसे बाहर हो गये। अपनी माता और मासीके साथ धीरे-धीरे आगे बढ़ते हुए वत्सराज मालवा-देशके उजयिनी नामक नगरीमें आ पहुँचे। वहाँ जितशत्रु राजा राज्य करते थे। उनकी पटरानीका नाम कमलश्री था। वहाँ नगरके बाहर, मार्गमें पैदल चलते-चलते थकी हुई धारिणी देवी, एक वृक्षकी छायामें बैठ रहीं और विचार करने लगी,-"हा देव! तुमने यह क्या कर डाला ?. मैं वीरसेन राजाकी प्राणप्रिया होकर भी ऐसी कष्टदायक अवस्थामें क्यों पड़ गयी ?" वे ऐसा ही विचार कर रही थीं, कि इतनेमें उनकी बहन धिमला, धारिणीकी आमा ले, रहमेकी जगह दूंदमेके लिये नगरमें गयीं। नगरके लोगोंको देखते-देखते वह क्रमशः सोमदत्त नामक सेठके घर का रास्ता देख, उसीमें घुस पड़ीं। वहाँ शान्तमूर्ति और परोपकारी सेठको बैठे देख, उन्होंने दीन-वचनोंसे कहा,-"लेठजी ! मैं, मेरी बहन और उसका पुत्र-ये तीनों परदेशी यहाँ आ पहुंचे हैं। यदि , P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
SR No.036489
Book TitleShantinath Charitra Hindi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhavchandrasuri
PublisherKashinath Jain
Publication Year1924
Total Pages445
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size355 MB
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