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________________ 204 nNAM श्रीशान्तिनाथ चरित्र। विमान स्खलित हो गया। यह देख, इसने सोचा, कि यह राजा कोई ऐसा-वैसा नहीं है; क्योंकि इसीके प्रभावसे मेरा विमान फिसल पड़ा है। यही विचार कर इसने मेरे पास भूतोंको भेजकर नृत्य करवाया / है।" यह सुन, रानीने फिर पूछा,-"स्वामी ! इसने पूर्व भवमें कौन सा पुण्य किया था, जिससे इसने इतनी ऋद्धि पायी है ? " यह सुन, राजाने कहा,-प्रिये ! इसके पूर्व भवका वृत्तान्त सुनो... "पहले ज़मानेमें सिन्धुपुर नामक नगरमें राजगुप्त नामक एक कुलपुत्र रहता था। उसकी स्त्रीका नाम शखिका था / वे दोनों दारिद्रता के कारण बड़ा दुःख पा रहे थे, इसलिये औरोंके घर सेवा-टहल करके अपनी जीविका उपार्जन करते थे। एक दिन दोनों पति-पत्नी लकड़ी लानेके लिये जङ्गलमें गये हुए थे। वहाँ एक साधुको देख, उन्होंने बड़ी भक्तिसे उन्हें प्रणाम किया। साधुने उन्हें जिनधर्मका उपदेश देते हुए कहा:- “यह जैनधर्म विधिपूर्वक पालन करनेसे कल्पवृक्ष और चिन्तामणिकी भांति सारा मनोरथ पूरा करता है। इसके बाद मुनिने उनके / पूर्व भवके पापोंका क्षय करनेके लिये उन्हें वीस-कल्याणक नामक तप का उपदेश किया। उसकी विधि उन्होंने इस प्रकार बतलायी, "पहले 'एक 'अट्ठम' करके, इसके बाद अलग-अलग ३२.उपवास करना।" उन्हों ने मुनिके बतलाये अनुसार इस तपकी आराधना की / तपके अन्तमें, पारणाके दिन, उनके घर एक मुनि आये / उन्हें देखते ही उन्होंने उनको प्रणाम कर, शुद्ध अन्न और जल लाकर उनके सामने रखा / इसके कुछ दिन बाद दम्पतिने चारित्र ग्रहण कर लिया। पुरुषने तो आचाम्लवर्द्धमान नामक तप किया और क्रमशः आयु पूरी होने पर मृत्युको प्राप्त हो, ब्रह्मदेवलोकमें जाकर देव हो गया और वहींसे आकर सिंहरथ नामक विद्याधर हुआ है / और उसीकी स्त्री शखिका और तरह / की तपस्याएं कर पांचवें देवलोकमें जाकर देवी हुई और आयुष्य पूर्ण होनेसे वहाँसे चलकर यही वेगवती नामकी सिंहरथकी पत्नी हुई है।" .... अपने पूर्व भवका यह वृत्तान्त श्रवण कर, सिंहरथको प्रतिबोध प्राप्त 72 ह. P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
SR No.036489
Book TitleShantinath Charitra Hindi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhavchandrasuri
PublisherKashinath Jain
Publication Year1924
Total Pages445
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size355 MB
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