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________________ पञ्चम प्रस्ताव / ~~ ~ Novvvvvvvor सच्चे दिलसे अहिंसा-धर्म स्वीकार कर लिया और उसीका पालन .करते हुए मरकर भूताटवीमें जाकर ताम्रचूल और स्वर्णचूल नामक . भूतदेव हुए। वहाँसे वे विमानपर चढ़कर अपने उपकार करनेवाले घनरथ राजाके पास आ, उनकी वन्दना और स्तुति कर, उनकी आशा * पाकर अपने स्थानको चले गये। ... - . घनरथ राजाने बहुत दिनोंतक सुख-पूर्वक राजलक्ष्मीका भोग किया। एक दिन लोकान्तिक देवोंने आकर उनसे कहा, "हे स्वामी! अब धर्म-तीर्थका प्रवर्तन करो।" यह सुन, अपने शानसे दीक्षाका समय आया जान, सांवत्सरिक दान कर, पुत्र मेघरथको राज्य पर बैठाकरे उन्होंने दीक्षा ले ली और घाती कर्मोंका क्षय कर, केवल-ज्ञान प्राप्त किया। इसके बाद भव्य जीवोंको प्रतिबोध देते हुए वे पृथ्वी-मण्डल पर विचरण करने लगे। . . . . . . . .. . ____एक दिन राजा मेघरथ, अपने छोटे भाई दृढ़रथके साथ, अपनी दोनों स्त्रियोंको सङ्ग लिये हुए, देवरमण नामक उद्यानमें आये। वहाँ वे लोग एक अशोक-वृक्षके नीचे बैठे हुए थे। इतने में बहुतसे भूत उनके पास आकर नाटक करने लगे। उन्होंने बहुतसे शास्त्र धारण कर, चर्मरूपी वस्त्र धारण किये हुए, सारे शरीरको रक्षाके लियें झूल पहन लिया। इसके बाद उन्होंने बड़ा ही अनोखा नृत्य किया। उनका नृत्य हो ही रहा था, कि किंकिणी और ध्वजाओंसे सुशोभित एक विमान आस्मानसे नीचे उतर कर मेघरथ राजाके पास आया। विमानमें सुन्दर स्त्री-पुरुषकी एक जोड़ीको बैठे देख, रानीने राजासे पूछा:- “स्वामी ये कौन हैं ?" राजाने कहा,-:: . . .........: - ,"देवी! वैताल-पर्वतकी उत्तर श्रेणीमें अलका नामकी एक नगरी है। वहींके विद्यु त्रथ नामक विद्याधरोंके राजाका यह पुत्र है। इसका नाम सिंहरथ है / यह स्त्री इसीकी पत्नी वेगवती है। यह खेचरेन्द्र अपनी स्त्रीके साथ धातकी खण्ड-द्वीपमें जिनेश्वरको. वन्दना करने गया हुआ था / वहाँसे यहाँ आतेही-आते अकस्मात् इसका Jun Gun Aaradhak Trust P.P. Ac. Gunratnasuri M.S.
SR No.036489
Book TitleShantinath Charitra Hindi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhavchandrasuri
PublisherKashinath Jain
Publication Year1924
Total Pages445
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size355 MB
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