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________________ 166 . चतुर्थ प्रस्ताव / साथ विवाद कर बैठती थी। एक दिन इसी तरहका विवाद होते-होते पुण्यसारने क्रोधमें आकर उससे कहा,-"अरी यालिके! यदि तू अपनेको बड़ी पण्डिता और कलावती मानती हो, तो भी तुझे मेरे साथ विवाद नहीं करना चाहिये; क्योंकि तू किसी पुरुषके घर दासी होकर ही जानेवाली है। इसपर उसने कहा, -- “यदि मैं दासी भी हूँगी, तो किसी बड़े भारी भाग्यशाली पुरुषकी हूँगी, तुम्हारी तो न हूँगी!” यह सुन, पुण्यसारने कहा,-"अरी वृथा अभिमान करनेवाली! यदि मैंने तुझे ज़बरदस्ती अपनी दासी नहीं बनाया, तो मैं पुरुष ही नहीं।” यह सुन, वह फिर बोली,-"रे मूर्ख! ज़बरदस्तीसे भी कहीं किसीका स्नेह प्राप्त होता है ?" फिर दम्पतीको इस तरह स्नेह कैसे हो सकता है।" इस प्रकार परस्पर विवाद कर पुण्यसार पाठशालासे अपने घर चला आया और उदास मुंह बनाये, क्रोध-सूचक शय्यापर जाकर सो रहा / इतने में पुरन्दर सेठ, भोजनका समय हो जाने के कारण, खानेके लिये घर आया। पुत्रकी हालत सुनकर वह उसके पास आया और उससे पूछा,-"बेटा! आज तेरा चेहरा ऐसा उदास क्यों हो रहा है ? इस असमयमें ही तू क्यों सोया पड़ा है ? इसका कारण बतला।" जब सेठने इस प्रकार आग्रहसे पूछा, तब उसने कहा,-"पिताजी ! यदि आप मेरा विवाह सेठ रत्नसारकी पुत्रो रत्नसुन्दरीके साथ कर दें, तय तो भुज्ञे चैन आयेगा, नहीं तो मुझे किसी तरह शान्ति नहीं मिलने की। यह सुन, सेठने कहा, -- "बेटा! अभी तेरी कच्ची उमर है। अभी. पाठशालामें रह कर विद्याका अभ्यास कर, पीछे जब व्याहका समय आयेगा, तब व्याह कर दिया जायेगा।” यह सुन, पुत्रने फिर कहा,-"पिताजी ! यदि आप उसके पितासे मेरे लिये उसकी मंगनी करा लें, तब तो मैं भोजन करूँगा, नहीं तो हरगिज़ नहीं खाऊँगा।" यह सुन, सेठने उसकी बात मान ली और उसे समझाबुझा कर भोजन कराया। इसके बाद वह स्वयं अपने स्वजनोंके साथ रत्नसार सेठके घर गया। उसे आते देख, रत्नसार सेठ उठ खड़ा हुआ, उसे बैठनेके P.P.A2Runratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
SR No.036489
Book TitleShantinath Charitra Hindi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhavchandrasuri
PublisherKashinath Jain
Publication Year1924
Total Pages445
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size355 MB
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