________________ श्रीशान्तिनाथ चरित्र। किया। एक समयकी बात है, कि उस सेठने पुत्रकी इच्छासे अपनी स्त्रीके साथ ही कुलदेवीकी पूजा की और उनसे इस प्रकार विनय पूर्वक निवेदन किया,–“हे कुलदेवी! मेरे पूर्वजोंने और मैंने भी बरा. बर इस लोकके सुखके निमित्त तुम्हारी आराधना की है। अब यदि मैं निपुत्र ही मर जाऊँगा, तो फिर तुम्हारी पूजा कौन करेगा ? अतएव सुम कृपाकर अपने अवधि-ज्ञानसे बतलाओ, कि मेरे सन्तान होगी या नहीं !" यह सुन, कुलदेवीने उपयोग देकर कहा,-"सेठजी ! पुण्यकार्य करते हुए कुछ दिन बीत जाने पर तुम्हारे अवश्य पुत्र होगा।" कुलदेवीकी यह बात सुन, हर्षित होते हुए सेठने कुल-पर्यायसे चले आते .. हुए धर्मो का विशेष रूपसे पालन करना शुरू किया। . कुछ दिन बाद एक बड़ा ही पुण्यात्मा जीव पुण्यश्रीकी कोखमें आया। उस समय उसने स्वप्नमें चन्द्रमा देखा। सवेरे ही उसने अपने पतिको इस स्वप्नकी बात कह सुनायी। सेठने अपनी बुद्धिसे / इस स्वप्नका विचार करके अपनी स्त्रीसे कहा,-"तुम्हें बड़ा हो उत्तम / पुत्र प्राप्त होगा।" यह सुन, वह बड़ी प्रसन्न हुई। इसके बाद क्रमसे समय पूरा होने पर शुभ दिन-नक्षत्रको उसके गर्भसे एक उत्तम लक्षणोंसे युक्त पुत्र उत्पन्न हुआ। उसकी पैदायशकी खुशीमें पिताने बड़ी धूमधाम की और दीन-हीन जनोंको तथा याचकोंको सोना, चाँदी और वस्त्रादिका दान किया। इसके बाद पुण्यसे प्राप्त होने के कारण सेठने अपने समस्त स्वजनोंके सम्मुख, उस पुत्रका नाम पुण्यसार रखा। .. वह पुत्र क्रमशः धात्रियोंसे पाला-पोसा जाता हुआ पाँच वर्षका हुआ। तब पिताने बड़ी धूमधामका उत्सव कर उसे एक बड़े . अच्छे पण्डितके पास कलाभ्यास करनेके लिये पाठशालामें भेज दिया। . उसी नगरमें रत्नसार नामका एक सेठ रहता था, जिसके एक / बड़ी ही सुन्दरी कन्या थी। उसका नाम रत्नसुन्दरी था। वह भी उन्हीं पण्डितजीसे पुण्यसारके साथ-ही-साथ कलाभ्यास करती थी। . कभी-कभी स्त्री-स्वभाववश चंचलताके कारण रत्तसुन्दरी पुण्यसारके P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust