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________________ ......ma r : तृतीय प्रस्ताव / या और तरहसे नारदके प्रति सम्मान नहीं प्रकट किया / इससे क्रोधित होकर नारदने विचार किया,- “ऐ ! इन दोनों भाइयोंका मन दासि. योंके नाचने-गानेमें इतना मोहित हो गया है, कि मेरा यहाँ आना भी इन्हें नहीं मालूम हुआ ? अच्छा, रहो, मैं किसी बलवान् राजासे इन नृत्य-गीत-कलामें होशियार दासियोंका हरण करवाये देता हूँ।" ऐसा विचार कर, तीनों लोकमें स्वेच्छापूर्वक विचरण करने घाले और लड़ाई-झगड़ा करने में बड़ी प्रीति रखनेवाले नारद ऋषि विद्याधरोंके राजा और तीन खण्डोंके स्वामी दमितारि नामक प्रतिवासुदेवके पास गये। मुनिको देखते ही राजा तत्काल उठ खड़े हुए और उनके सामने जा, सत्कार-पूर्वक उन्हें आसन पर बैठाकर पूछा,"हे मुनि ! पृथ्वी पर आपने कोई आश्चर्य-जनक बात देखी हो, तो कहिये / " नारदने कहा, "हे राजेन्द्र ! सुनो / मैं सुभगा नगरीमें राजा अनन्तवीर्यके पास गया हुआ था / उनके यहाँ खर्वरी और चिलाती नामकी दो दासियोंका नाट्य मैंने देखा, जिससे मुझे बड़ा आश्चर्य हुआ। हे राजन् ! यदि तुम्हारे यहाँ वैसी गीत-नाट्यमें कुशल स्त्रियाँ नहीं रहीं, तो तुम्हारा विद्यावल किस कामका ? और तुम्हारा यह इतना बड़ा राज्य ही किस कामका है ? तुम्हारी यह सारी समृद्धि व्यर्थ ही है।" यह कह, मुनि अन्यत्र चले गये। इसके बाद प्रतिवासुदेव राजा दमितारिने अभिमानके मारे तत्का लही राजा अनन्तवीर्यकी राजधानीमें एक दूत भेज कर कहलवाया, कि-"सव प्रकारके रत्न राजाधिराजोंके ही आश्रयमें रहते हैं। इसलिये तुम्हारे यहाँ गीत-नाट्य में जो दो कुशल दासियाँ हैं, उन्हें शीघ्र ही मेरे पास भेज दो। इस विषय में तनिक भी विलम्ब न करो।" दूतकी यह बात सुन, अपराजित और अनन्तवीर्यने कहा, "हे दूत! तुमने जो कुछ कहा, सो ठीक है; परन्तु हम लोग इन दासियोंके भेजनेके बारेमें पीछे विचार कर जैसा उचित समझेगे, करेंगे। अभी तो तुम अपने स्वामीके पास लौट जाओ।" यह कह, उन्होंने उस दूतको P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
SR No.036489
Book TitleShantinath Charitra Hindi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhavchandrasuri
PublisherKashinath Jain
Publication Year1924
Total Pages445
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size355 MB
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