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________________ श्रीशान्तिनाथ चरित्र / श्रीमान्के नगरसे बाहरवाले उद्यानमें, जिसका नाम अशोकतिलक है, पधारे हैं और लोगोंको धर्मका उपदेश कर रहे हैं।" यह सुनतेही राजाने उस मालीको पाँचों अंगोंके आभूषण इनाममें दिये। वे जिनकी राह देख रहे थे, उन्हीं गुरुके आगमनकी बात सुन उनके चित्तमें बड़ी भक्ति उत्पन्न हुई। इसके बाद वे बहुनसी सामग्रियाँ साथ लिये, पटरानी समेत गुरुकी वन्दना करने गये। वहाँ पहुँच राजाने खङ्ग, छत्र, आदि राज्यके चिह्नोंको दूर फेंक, गुरुकी तीन बार प्रदक्षिणा और उत्तरासङ्ग कर, विधि-पूर्वक उनकी वन्दना की। इसके बाद वे परिवार सहित उचित स्थान पर बैठे। गुरु महाराजने कहा, "हे राजन् बुद्धिमान् मनुष्योंको चाहिये, कि सब दुःखोंका नाश करनेवाले और सत्र सुखोंके देनेवाले धर्मकी सेवा करें।" . इसी समय अशोकदत्त नामक एक बड़े भारी सेठने गुरुसे पूछा," हे पूजनीय ! मेरे अशोकश्री नामकी एक पुत्री है। वह न मालूम किस कर्मके दोषसे शरीरसे बहुत ही दु:खी होरही है? कृपाकर बतलाइये, कि बड़े-बड़े उपचार करनेपर भी उसका रोग तनिक भी कम क्यों नहीं होता ?" सूरिने कहा,-" सेठजी ! तुम्हारो यह पुत्री पूर्व भव में भूतशाल नामक नगरके भूतदेव नामक सेठकी कुसुमवती नामक स्त्रीथी। एक दिन उसके घरमें रखा हुआ दूध बिल्ली पी गयी। यह देख, कुसमवतीने क्रोधमें आकर अपनी देवमती नामक पुत्रवधूसे कहा,-"अरी, क्या तेरे सिर डाकिनी सवार हो गयी है, जो तू इस प्रकार दूधसे बेख़बर हो रही.?" यह सुन, वह बेचारी बालिका डर गयी और थर-थर काँपने लगी। यह हाल देख, उसी समय उसीके घरके पास खड़ी एक चंडाल की स्त्रीने, जो डाकिनीका मन्त्र जानती थी, बहाना पाकर उस बहूके . शरीरमें डाकिनी प्रविष्ट करदी, जिससे वह बड़ा दुःख पाने लगी। बहु- / तेरे वैद्योंने उसकी चिकित्सा की ; पर वह किसीसे अच्छी नहीं हुई। एक दिन एक योगी वहाँ आ पहुँचा। उसने मंत्रके बलसे अग्निमें ; अपना यन्त्र तपाया। बस तत्कालही वेदनाके मारे तड़पती हुई वह चण्डा.. KITUSL .
SR No.036489
Book TitleShantinath Charitra Hindi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhavchandrasuri
PublisherKashinath Jain
Publication Year1924
Total Pages445
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size355 MB
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