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________________ womenwww Annnnnnnnnnnn तृतीय प्रस्ताव। सुख-चैन नहीं पाता था। एक दिन उसने राजा अमरदत्तसे निवेदान किया,-" हे राजन् ! उस शवकी यह बात, जो उसने मेरी मृत्युके विषयमें कही थी, मुझे कभी नहीं भूलती। उसीके लिये तो मैंने अपना देश छोड़ रखा है।" यह सुन, राजाने कहा,-" हे मित्र ! तुम खेद न करो; वह सब भूतलीला मात्र थी।" मित्रानन्दने कहा, --"निकटताके कारण यहाँ रहनेपर भी मेरा मन दुःखित होता रहता है, इसलिये मुझे कुछ दूर भेज दो।" यह सुन, राजाने कुछ विचार करनेके बाद कहा;"हे मित्र ! यदि तुम्हारी ऐसी ही इच्छा है,तो तुम कुछ विश्वासी मनुष्योंके साथ वसन्तपुर चले जाओ।" इसके बाद मित्रानन्द तैयार होकर वसन्तपुरको ओर चला। राजाने अपने आदमियोंको भी उसके साथ रवाना कर दिया। साथ ही उन्हें जाते समय यह भी कहा, कि "तुममेंसे कोई एक आदमी वसन्तपुर पहुँचने के बाद यहाँ आकर मित्रानन्दका कुशल-समाचार मुझे सुना जाना।" उन आदमियोंने “बहुत अच्छा " कहकर राजाकी आज्ञा स्वीकार कर ली। इधर राजा अमरदत्त मित्रके वियोगसे विह्वल होते हुए भी पुण्योंके प्रभावसे प्राप्त राजलक्ष्मीको रानीके साथ भोगते रहे। बहुत दिन बीत जानेपर भी राजाके भेजे हुए आदमियोंमें से कोई लौटकर नहीं आया, इसलिये राजाने कुछ अन्य मनुष्यों को उधर की ओर भेजा। कुछ दिन बाद वे लौट आये और राजासे बोले,–“हे स्वामिन् ! हम लोग वसन्तपुर तक जाकर लौट आये; पर कहीं मित्रानन्द नहीं नज़र आये, न उनका कुछ समाचार कहीं सुननेमें आया।" यह सुन, अपने मनमें परम व्याकुल होकर अपनी रानीसे कहा,-" प्रिये ! अब मैं क्या करूँ? मित्रः का तो कुछ पताही नहीं लगता।" - रानी बोली,-"हे स्वामी ! यदि कोई सानी पुरुष यहाँ आ जाये, तो संशय दूर हो, और तो कोई उपाय इस संशयके दूर होनेका नहीं मालूम पड़ता।" वे दोनों इस तरहकी बातें करही रहे थे, कि अकस्मात् बाग़के मालीने आकर कहा,-"हे . राजन् ! चार प्रकारके ज्ञानको धारण करनेवाले श्रीधर्मघोष नामक सूरि, / P.P.AC. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
SR No.036489
Book TitleShantinath Charitra Hindi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhavchandrasuri
PublisherKashinath Jain
Publication Year1924
Total Pages445
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size355 MB
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