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________________ * तृतीय प्रस्ताव। . 13 करायो। इसके बाद उसमें आग लगायी गयी। अमरदत्त चिताके पास आकर खड़ा हो रहा। उस समय सेठने उसे रोकते हुए कहा,“ भाई ! आज भर ठहर जाओ ; क्योंकि आजही अवधिका अन्तिम दिन है। सेठकी यह बात सुन, और-और लोगोंने भी उसे चितामें कूदनेसे रोका और सबके सब वहीं रह गये। इतने में दिनके पिछले पहर मित्रानन्द रत्नमञ्जरीको लिये हुए वहाँ आ पहुँचा। उसे आते हुए देख,अमरदत्त बेतहाशा दौड़ा हुआ उसके गले आ लगा। उस समय एक दूसरेसे मिलकर उन दोनों मित्रोंको जो आनन्द हुआ, उसे वे ही दोनों जान सकते हैं, दूसरा कोई कहनेको समर्थ नहीं है। इसके बाद मित्रानन्दने कहा,-" हे मित्र ! लो, मैं बड़ी-बड़ी कठिनाइयाँ झेलकर तुम्हारे लिये तुम्हारी इस मनमोहिनीको लेता आया है।” वह सुन,अमरदत्तने कहा,"तुमने अपना नाम सार्थक कर दिया, क्योंकि तुमने अपने मित्रको सचमुच आनन्द दिया। इसके बाद वहाँपर ईंधन और चिताको दूर कर पाँच लोकपालोंको साक्षी बनाकर उसी अग्निके सामने शुभ समयमें मित्रानन्दने उन दोनोंका व्याह करा दिया। दोनोंकी योग्य जोड़ी मिल गयी, यह देख, पुरजनोंको भी बड़ा आनन्द हुआ। रत्नमंजरीका रूप देख, कुछ लोगोंने कहा, “इस स्त्रीकी पुतली देखकर यदि यह मनुष्य मोहित हुआ, तो इसमें कोई आश्चर्यकी बात नहीं हैं।” इस प्रकार उन दोनोंका विवाह हो जानेके बाद उसी स्थान पर अमरदत्तको भाग्यसंयोगसे जो प्राप्त हुआ सो हे सभासदो ! तुम लोग ध्यान . देकर सुनो उसी समय पाटलिपुत्रके राजाकी मृत्यु हो गयी। उनके कोई पुत्र नहीं होनेके कारण राजपुरुषोंने पांच दिव्योंको अधिवासित किया। प्रातःकाल वे पाँचों दिव्य नगरके सभी तिराहों, चौराहों और चौक वगैरह स्थानोंमें घूमते हुए वहाँ आथे, जहाँ अमरदत्त था। उस समय घोड़े आपसे आप हिनहिना उठे, हाथी चिंघाड़ने लगे, छत्र आपसे आप खुल गया, वर स्वयं ही दुलने लगे और जलसे भरा हुआ सुवर्ण P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
SR No.036489
Book TitleShantinath Charitra Hindi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhavchandrasuri
PublisherKashinath Jain
Publication Year1924
Total Pages445
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size355 MB
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