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________________ nnnnnnnnnnnnnnnnnnnn श्रीशान्तिनाथ चरित्र। "हे सुन्दर ! तुम भी आकर इसी घोड़े पर बैठ जाओ। ऐसी अच्छी सवारी रहते हुए भी तुम पाँव प्यादे क्यों चलते हो ?" यह सुन, मित्रा-; नन्दने कहा,– “जबतक मैं इस राज्यकी सीमासे बाहर नहीं हो जाता, तबतक मैं पैदलही चलूंगा।" उसके ऐसा कहने पर कुछ देर ठहर कर राजकुमारीने फिर कहा,– “हे भद्र ! अब हमलोग अपने देशको सीमासे बाहर हो गये, अब तुम भी आकर इसी घोड़े पर बैठ जाओ।" मित्रानन्दने कहा,-"सुन्दरी ! मेरे नहीं बैठनेके कई कारण हैं।" उसने पूछा,-"कौनसा कारण है ?" वह बोला,-"सुन्दरी ! मैं तुम्हें अपने लिये नहीं ले जा रहा हूँ ; बल्कि अपने मित्र अमरदत्त के लिये।" ऐसा कह उसने अपने मित्रकी सारी कथा उसे सुनाते हुए फिरसे कहा,"हे भद्रे ! इसीलिये मेरा तुम्हारे साथ एक आसन वा शय्या पर बैठना उचित नहीं है।" मित्रानन्दकी ये बातें सुन, विस्मित होकर राजकुमारीने अपने मनमें विचार किया,-"ओह ! इस मनुष्यका चरित्र तो बड़ा ही अलौकिक है / भला जिसके लिये लोग अपने बाप, मा, भाई और मित्रके साथ धोखाधड़ी किये बिना नहीं रहते, वैसी सुन्दर रूपवाली स्त्री पाकर भी यह अपने मनमें उसकी अभिलाषा नहीं करता, यह तो बड़े ही. आश्चर्य की बात है। यह अवश्य ही कोई महात्मा है। अपने कार्यकी सिद्धिके लिये तो सब लोग दुःख उठानेको तैयार रहते हैं, पर दूसरेके लिये दुःख उठाना किसी बिरले ही पुरुषका काम है।" ऐसा विचार करती हुई राजकुमारी उसके गुणोंपर लटू हो गयी। क्रमश: वे दोनों पाटलिपुत्र नगरके पास आ पहुँचे। - इधर दो महीनेकी अवधि बीत जाने पर भी जब मित्रानन्द नहीं आया, तब अमरदत्तने रत्नसार सेठसे कहा,-" हे तात ! मेरा मित्र तो आजतक नहीं आया, इसलिये आप कृपाकर मेरे लिये लकड़ियोंकी एक ) चिता तैयार कराइये, जिसमें दुःखसे जलता हुआ मैं प्रवेश कर जाऊँ।" यह सुन, सेठको बड़ा दुःख हुआ; परन्तु लाचार उसका बड़ा आग्रहदेख, उसने वहाँके कुछ लोगोंके साथ नगरके बाहर जाकर एक चिता तैयार FoundanaKu
SR No.036489
Book TitleShantinath Charitra Hindi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhavchandrasuri
PublisherKashinath Jain
Publication Year1924
Total Pages445
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size355 MB
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