________________ साहित्य प्रेमी मुनि निरव्यविजय संयोजित को कहने लगा कि हे प्रिये ! यही वह श्राम का पेड़ है जहां कि शुक के मुख से तुम्हारे सौंदर्य का वृतांत सुन कर शुक के पीछे पीछे दौड़ा था और उस वन में जाकर तुमसे विवाह किया / बाद में तुम्हारे साथ अपने नगर में आया ! . . शुकराज का मूर्छित होना: स्पष्ट शब्दों में इन बातों को सुनकर राजा की गोद में बैठा हुआ राजकुमार 'शुकराज' विद्युत के समान शीत्र ही मूर्छित होकर पृथ्वी पर गिर पड़ा / अपने पुत्र को इस प्रकार देख कर राजा-रानी दोनों इस प्रकार कोलाहल करने लगे कि उसे सुनकर बहुरा से लोग एकत्रित हो गये / तथा चंदन, जल, पखे की वायु आदि अनेक प्रकार के शीतोहचार करके राजा आदि सब जनों ने मिल कर राजकुमार को सचेत किया। परन्तु वह शुकराज प्रसन्न नेत्र से सभी ओर देखता था, किन्तु लोगों को कुछ / कहता नहीं था अर्थात् वह बोलता नहीं था। तब राजा अपनी प्रिया सहित अत्यन्त उदास होकर सोचने लगा कि राजकुमार को अचानक क्या हो गया ? राजा ने अपने पुत्र के बोलने के लिए अनेक प्रयास किये किन्तु सब निरर्थक हुए, तब राजा ने पुनः कहा कि-हे प्रिये ! यमराजा प्रत्येक उत्तम पदार्थ में कुछ न कुछ दोष लगा देता है, जिस प्रकार चन्द्रमा में कलंक, कमल के नाल में कांटे, समुद्र के जल को नहीं पीने योग्य P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust