________________ साहित्यप्रेमी मुनि निरञ्जनविजय संयोजित (3) __ + ग्रंथकर्ता लिखते है कि परमाराध्य गुरुदेव श्री मुनिसुदरसूरीश्वरजी महाराजा की कृपा से अल्प बुद्धिवाले मैंने इस ग्रंथ की रचना की है जिसे विद्वजनोंने मेरे पर कृपा कर शुद्ध किया है. संवत् प्रवर्ततक महाराजा विक्रम द्वारा स्थापित संवत 1499 में वर्ष के महाशुक्ला चतुर्दशी रवि पुष्य आदि शुभ योगसमन्वित मुहूर्त में स्तंभनतीर्थ में शुभशील गणि (मैंने ) विक्रमराजा का चरित्र लिखा है. जब तक पर्वत सागर, सूर्य, चंद्र, आकाश, पृथ्वी, नक्षत्र एवं धर्माधर्म का विचार करने में निपुण महान् पुरुषों से युक्त यह संसार शोभेगा, तब तक महाराजा की कीर्ति से युक्त यह ग्रंथ जैन शासन में सजन पुरुषों के चित्त को आनंद देगा. एक हस्तलिखित पुस्तकमें निम्नलिखित विशेष पाठ उपलब्ध है:-, 4 तेषां पादप्रसादेन मया मूर्खेण निर्मितः ग्रन्थो विद्वज्जनैः शोध्यः कृपां कृत्वा मनोपरि। श्रीमद्विक्रमकालाच्च खनिधिरत्न संख्यके वर्षे माथेसिते पक्षे शुक्ल चतुर्दशीदिने। पुष्ये रवौ स्तम्भतीर्थे शुभशीलेन पंडिता ( साधना) विदधे चरित ह्येतद् विक्रमाक स्य भूपतेः / / यावद् भूधरसागरा रविशशी ख भर्धवस्तारकाः, धर्माधर्म विचारणेकनिपुण-यावद् जगद् राजते / तावद् विक्र ाभराजविलसत्कीर्तिप्रभामिश्रितो ग्रंथोऽयं जिनशासने सुहृदयां (दा) चित्ते चिरौं नन्दतात् // P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust