________________ विक्रम चरित्र की तपश्चर्या करने वाले महान् तपस्वी श्रीमान् जगच्चंद्रसूरी-- श्वरजी के पट्टधर शिष्य विशुद्ध चारित्रशील कवि लोगों से सन्मानित आचार्य श्रा विद्यानंदसूरीश्वरजी के शिष्य परमप्रतापी श्री धर्म घोषसूरीश्वरजी हुए, उनके बाद उनके पट्टशिष्य सर्वशास्त्र में पारंगत श्री सोमप्रभसूरीश्वरजी नामक आचार्य हुए जिन्होंने पृथ्वी तल पर अनेक भव्य जीवों को प्रतिबोध किया उनके पट्टधर शिय आचार्य श्री सोमतिलकसूरीश्वरजी हुए और उनके शिष्य महान प्रभावशील आचार्य सोमसुंदरसूरीश्वरजी के शिष्य अनेक ग्रन्थ प्रणेता आचार्य श्री मुनिसुंदरसूरीश्वरजी के शिष्य पंडित श्री शुभशील गणिने इस विक्रमचरित्र की रचना की है. तत्पपूर्व वसुधाधरतुंङ्गशंङ्गे श्रीदेवसुदरगुरुर्गरिमाभिरामः; सूर्यायमानवदनो. नवकायकान्तिः गोभिः प्रबोधितजनाब्जहृदन्तरालः // 8 // तत्पट्टवासवककुगिरिभूषणोऽभूत श्रीसोमसुदरगुरुस्तरणिः प्रतापी; * तारं गशैलशिखरे जिनतीर्थ नाथम् , प्रातिष्ठपत् वरतमोत्सवपूर्वकं यः / / 9 / / तस्याद्योऽजनिशिष्यः श्रीमुनिसुदरसूरिरमलमतिविभवः; येनानेके ग्रन्था गुर्वावल्यादयोविहिताः // 10 // कृष्णसरस्वतीत्येव दधानो विरुद भवि; तच्छिष्योऽभत् द्वितीयश्च जयचंद्राभिधोगुरुः // 11 // मुनिसुदरसूरीशविनेयः शुभशीलभाक्; चकार विक्रमादित्यचरित्र मन्दधीरपि / / 12 / / प्रसाद विबुधैः कृत्वा ममोपरि निरन्तरम् ; यत्लेन शोधनीयोऽयं ग्रन्थः कूटोपसारतः // 13 // P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust