________________ 647 साहित्यप्रेमी मुनि निरञ्जनविजय संयोजित करनेवाले थे. लेकिन तुम में उन के जैसी अपूर्व दयालुता का अभाव होने से में उस समय हँसी थी." _ अपने पिता विक्रमादित्य का चारों चामरधारिणी द्वारा इस प्रकार का रोमांचकारी चरित्र सुन कर विक्रममरित्र खुब प्रसन्न हुआ. और हमेशा न्याय मार्ग द्वारा पृथ्वी का पालन करते हुए राज्य करने लगा. श्री सिद्धसेनदिवाकरसूरीश्वरजी के पास में श्री जिनेश्वरदेव द्वारा प्रकाशित धर्म को सूनते महाराजा विक्रमचरित्र धर्मपरायण हुए. श्री शत्रुजय के उद्धारक जावडशाह: प्रभु श्री ऋषभदेवजी के सुपुत्र सुराष्ट्र के नाम से सुप्रसिद्ध हुई भूमि सौराष्ट्र की गोद में सदैव शाश्वत तीर्थाधिराज श्री शत्रंजय भव्य जीवों के अनंतकाल से आकर्षित कर रहा है. वर्तमान चोवीसी में सबसे प्रथम महातीर्थ श्री शत्रुजय पर भरत चक्रवतीने चतुर्विध संघ के साथ आरोहण किया था. बिच मैं अनेकानेक आत्मा इस पवित्रतम भूमिके प्रभाव से संसार समुद्र पार उतर गये, उस की कोई गिनती नहीं है. श्री सिद्धसेनदिवाकरसूरीश्वरजी महाराज के उपदेश से अवतीपति विक्रमादित्य महाराज भी चतुर्विध संघ के साथ महातीर्थ पे जाकर श्री आदीश्वरजी से भेटे थे. और आत्मा को पावन किया था. . 22 . P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust