________________ साहित्यप्रेमी मुनि निरञ्जनविजय संयोजित 645 --- लेकर रानी को वह तोता दे दिया. रानी भी उसे प्राप्त कर के खुश हुई, कमलादेवी तोते से जो जो प्रश्न पूछे उन सभी प्रश्नों का उत्तर उसने यथोचित दिया. उस तोतेने मन में विचार किया, 'यदि मैं अपने आपको प्रगट कर दूंगा तो विना विचारे यह पट्टरानी उस ब्राह्मण को मरवा डालेगी. या तो यदि यह राजा रूपधारी ब्राह्मण मुझे तोते के शरीर में जानेगा. तो मुझे मरवा डालेगा.' ___ अब वह सौभाग्यवान् तोता रानी द्वारा हमेशा अच्छा 'भोजन आदि प्राप्त करता है, और आनंद से समय वीताता हैं. महारानी को तोते विना क्षण भी चैन नहीं पडता. एक समय तोतेने पूछा, 'हे देवी! यदि मैं मर जाऊं तो क्या हो ?' देवीने कहा, 'यदि तुम मर जाओगे तो मैं भी काष्ट'भक्षण करुंगी.' एक बार इस तोतेने अकस्मात भीती पर गो-गराली को मरते देखा. राजा का जीव तोते में से निकल कर उस में अधिष्टित होकर दीवार पर रहा, रानीने जब तोते को मरा हुआ देखा तो उसने नकली राजा से कहा, 'मेरा इच्छित. प्रिय तोता मर गया है, अब उस के बिना मै नहीं जी सकती मैं काष्ठभक्षण करुंगी.' जब रानी काष्ठभक्षण के लिये तैयार हो गई तब राजा शरीरधारी ब्राह्मणने रानी को प्रसन्न करने के हेतु कहा, 'मैं इस तोते को अभी जिलाता हूँ, इस में क्या बड़ी बात है ? '. P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust