________________ साहित्यप्रेमी मुनि निरञ्जनविजय सयोजित वह स्त्री सचमुच हि लक्ष्मी समान है, जो सुधर्म में रक्त है, विवेकस हित है, शान्त है, सती है, सरल है, प्रियबोलनेवाली है, सब कार्यों में निपुण है, अच्छे लक्षणवाली है, सद्गुणी है, सद् आचरणवाली है, गृहकार्य में कुशल है, अच्छी मतिवाली है, सदा संतुष्ट है, विनययुक्त है और सौभाग्यवाली है. + कुछ पंडितजन सरस्वती को भी साररूप मानते हैं, लेकिन यह बात मुझे जरा भी नहीं जचती है. क्यो कि जैसे थोडी लक्ष्मीवाला मनुष्य स्वयं शोभता है, अन्य / को शोभाता है, किन्तु थोडी विद्यावालों मनुष्य को क्यों कोई सन्मान देता नहीं या विनवता नहीं, इस लिये जगत में लक्ष्मी को ही लोग मानते है. ____ अपना हित चाहनेवाले सत्पुरुषों को अन्य स्त्रियों पर कभी भी वासनायुक्त दृष्टि नहीं करना चाहिये, साथ ही विचक्षण पुरुषों को परस्त्री और पर द्रव्य को लेने का जरा भी पात्रापात्र विचारभावविरहोयच्छ न्युदारात्मनाम् , मातलक्ष्मी ! तव प्रसादवशनो दोषाअपि स्मुः गुणाः. स. 12/316 4 सा सद्धर्मरता विवेककलिता शान्ता सती सार्जवा, सोत्साहा प्रियभाषिणी सुनिपुणा सल्लक्षणा सद्गुणा / / सवृत्ता गृहनीतिविस्मितमुखी दानोन्मुखी सन्मतिः संतुष्टा विनयान्विताऽतिसुभगा श्रीरेव सा स्त्रीनं नु. स. 12/318 // P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust