________________ विक्रम चरित्र "एक बार प्रातःकाल अनेक मंत्री, सामत आदि से भरी हुई सभा में महाराजा विक्रमादित्य बैठे हुए थे. उस समय प्रतिहार द्वारा निवेदन करवाने के बाद कोई एक वैतालिक-जादुगर, 'हे राजन् ! आप चिरायु हो ?' ऐसा कहते हुए सभा में आया और नमस्कार कर बोला, 'हे राजन् ! आप को कुछ आश्चर्यकारी कला दिखाना चाहता हुँ. अतः आप सावधान हो कर देखिये.' ____महाराजाने कहा, 'हे कलावान् ! तुम अपनी कला बताओ.' तब सभाजनादि उत्सुक होकर देखने लगे. वैतालिक वहां से अदृश्य रूपवाला बन कर कहीं चला गया, सभी सभासद आश्चर्यचकित हुए, इतने में कोई पुरुष अपने बाएं हाथ में एक सुंदर स्त्री और दाहिने हाथ में तलवार लेकर सभा में आया. उसने महाराजा को नमस्कार करके कहा, 'इस संसार में मैं केवल दो चिजों को ही सारभूत मानता हुँ. एक लक्ष्मी और एक स्त्री, कहा भी है हे लक्ष्मी माता ! तुम्हारे प्रसाद के वश दोष भी गुणरूप हो जाते है. आलस्य स्थिरता को प्राप्त करता है, चपलता उद्योगिता कहलाती है, मौन मितभाषिता में परिणत हो जाता है, मुग्धता-कमवुद्धि, सरलता रूप हो जाती हैं, योग्य-अयोग्य पात्र के भेद को नहीं जान सकने की शक्ति को उदारता का नाम दिया जाता है. x और स्त्री के लिये भी कहा हैx आलस्यं स्थिरतामुपैति भजते चापल्यमुद्योगिताम् , मूकत्वं मितभाषितां वितनुते मौग्ध्यं भवेदार्जवम् ; Jun Gun Aaradhak Trust P.P. Ac. Gunratnasuri M.S.