________________ साहित्य प्रेमी मुनि निरज्जनविजय संयोजित arvvvvvvvvvvi लगा-यह शुक मुझ को कूप मडूंक (मेढक) कैसे बना रहा है ? . ठीक इसी समय शुक ने पुनः कहा-कि हे राजन् ! तुम कूप.. मेढक के समान ही हो !" राजा यह सुनकर सोचने लगा कि "निश्चय ही यह शुक पंडित की तरह बड़ा ज्ञानी है !" इतने में वह शुक राजा से फिर कहने लगा कि हे राजन् ! जैसे छोटे गांव में रहने वाला प्रामिण (गंवार) अपने दुर्बल बैल को जिसके कि सींग और दाँत भी हिलते हैं, उसे श्रेष्ठ बैल मान लेता है। संसार में मोह, यही अनोखी चीज है। क्यों कि झठी बात को भी मोह के कारण सच्ची मान लेता है / " बाद में उस शक ने एक छोटी सी कथा सुनाई। "एक गंवार के घर एक वृद्ध और दुर्बल बैल था / उसके सब दांत और दोनों सींग हिलते थे / उसकी पूछ के बाल निकल जाने से पूछ विचित्रं दिखाई दे रही थी। पेट वृद्धावस्था के कारण अतिं. दुर्बल हो चुका था और उसके ऊपर चन्द्राकार (फोले) फुन्सियां हुई थी। बैल का शरीर बहुत दुर्बल और कमजोर हो चुका था / इस प्रकार अपने इस असुन्दर बैल को भी, अच्छे बैलों के गुण-समूह को न जानने वाला वह गँवार अपने बैल को सर्व श्रेष्ठ मानकर अपने मन ही मन खुशी मना रहा था।" "हे राजन ! उसी प्रकार आप भी अपनी सामान्य स्त्रियों Jun Gun Aaradhak Trust