________________ साहित्यप्रेमी मुनि निरञ्जनविजय संयोजित 30 . में देवाङ्गना को भी जीतनेवाली वह कन्या पालखी में बैठकर सखियों के सहित वहा आई. पालखी में से उतरते हुए उस कन्याने विक्रमादित्य महाराजा को देखा. उन के रूप से मोहित-शून्यचित्ता बन गई, और उस के पैर विचलित हो गये. क्यों कि-.. . इन्द्रियों में रसेन्द्रिय, कर्मों में मोहनीय कर्म, व्रतो में ब्रह्मचर्य और गुप्ति में मनगुप्ति ये चारों दुःख से जीते जाते है. . विक्रमादिता को देख कर वह सुरसुंदरी विचारने लगी, 'क्या यह इन्द्र है ? या देव ? या नागेन्द्र है ? या किन्नर है ? अधवा कोई विद्याधर है ?' शन्धचित्तसे मन्दिर में भक्ति पूर्वक देवी को नमस्कार किये, और इस प्रकार बोली, 'हे देवी ! यदि यह सुंदर पुरुष मेरा पति हो जायगा तो मैं सवालाख सोनामोहरों की भेट आप के चरणों में धलंगी.' इतना कह कर वह अपने महल गई. . . विक्रमादित्य महाराजा भी उसका सुंदर रूप देख कर . उसे प्राप्त करने की इच्छा से अत्यंत आतुर हुए. तब वह शीघ्र ही देवमंदिर में गये, और भक्तिपूर्वक देवी को नमस्कार , करके दो हाथ जोड कर बोले, 'हे देवी! यह कन्या मेरी : प्रिया बनेगी तो मैं सवालाख सेनामाहरों से आप की / पूजा करूंगा.' देवी को भक्तिपूर्वक नमस्कार कर के सुरसुंदरी अपने महल गई, और मोहित होने से उसने अपनी सखी को भेज P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust