________________ साहित्यप्रेमी मुनि निरञ्जनविजय संयोजित 531 और मेरे अंतःकरण को अपने साथ ले जाएँ, क्यों कि मैं अवला ठहरी. मैं आपके स्थिर मनोबल से ही बल प्राप्त कर जीवित रह सकती हूँ. अन्यथा आपके बिना मैं मरी हुई हूँ ऐसा समझे. आप अधिकतर रातों में आकर मेरे वियोगरूपी अग्नि को शांत कीजिये. हम दोनेा का संयोग करनेवाली कोची हलवाइन का दोनों पैर पकड कर मेरा प्रणाम कहियेगा." यह सब देख कर राजा विक्रमादित्य अपने चित्त में इस प्रकार विचार करने लगे, 'अहो मदनमजरी का चरित्र तो पापमय हैं.' कहा है कि कामान्ध औरत देखती क्या, कुल प्रतिष्ठा सुजनता, मानमर्यादा स्वयं की भी न रखती कुशलता; स्वच्छंद मन व्यभिचारिणी जो काम करती कठिन है, वह काम नागिन (सर्प) मत्तगज या सिंह से भी कठिन है... __ इस लिये संसार को दुःख देनेवाली हथिनी की तरह ऐसी स्त्रियों का दूर से ही त्याग करना चाहिये. ऐसे किसी मंत्र की तथा ऐसे किसी देव की उपासना करनी चाहिये कि जिससे यह स्त्री रूपी पिशाचिनी शीलरूपी जीवन को न खा सके. मान लो जगत का संहार करने की इच्छा से क्रूर विधाताने सर्प के दांत, अग्नि, यमराज की जिह्वा और विष के अंकुर इन सब को मिला कर स्त्रियों को बनाया हो! कदाचित् संयोग से बिजली. P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust