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________________ ~ ~ ~ ~ विक्रम चरित्र 2 कार्यों में जो सदा प्रवृत हैं; इस संसार में उसी का जन्म सार्थक है और उसी का जीवन सफल है।" - इस भारत वर्ष में अपनी सारी प्रजा को उऋण करके अवन्ती पति महाराजा विक्रमादित्य अपने नाम से नया संवत् प्रवर्तन कर प्रजा का पुत्रवत् पालन करने लगे। पुण्य योग से एक बार सर्वज्ञ पुत्र जैनाचार्य श्री सिद्ध से नदिवाकरसूरीश्वरजी महाराज सपरिवार क्रमशः ग्रामानुग्राम भव्य जीवों को धर्मोपदेश देकर सन्मार्ग में स्थापन करते हुए अवन्ती नगरी में पधारे / अवन्ती पति महाराज ने अपने परोपकारी गुरुदेव का बड़ा भारी शानदार प्रवेश महोत्सव किया। बाद में प्रतिदिन पूज्य गुरुदेक के मुख कमलसे धर्मोपदेश सुनकर अपनी धर्मभावना बढाने लगे। ___एक दिन सूरीश्वरजी महाराज ने महाराजा विक्रमादित्य आदि महाजनों के आगे धर्मोपदेश देते हुए फरमाया कि "इस अनादि कालीन संसार में प्राणियों को मोक्ष के चार परम कारण प्राप्त होने अत्यन्त दुर्लभ हैं- . 1. आर्य क्षेत्र और सद् धर्म वान् उत्तम कुल में मानव जन्म प्राप्त होना / 2. जिन वचन रूप सद् शास्त्रों का श्रवण होना और 3. उस पर अटल श्रद्धा होनी तथा 4. संयम-शुद्ध चारित्र धर्म प्राप्त कर उसमें शक्तियों का पूर्ण विकास होना करना। * येचारों मोक्ष के परम साधन महाभाग्यशाली जीव को ही प्राप्त * "चत्तारि परमं गाणि दुल्लहाणीह जंतुणो ___ माणुसत्त सुई सद्धा संजमंमी अ वीरिअं / / 3 / / सर्ग 8 P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
SR No.036483
Book TitleSamvat Pravartak Maharaja Vikram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNiranjanvijay
PublisherNiranjanvijay
Publication Year
Total Pages754
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size455 MB
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