________________ साहित्यप्रेमी मुनि निरञ्जनविजय संयोजित करा." ऐसा कह कर चोर जाने लगा तो उसने उसे रोका, इस पर वह बोला, " अभी मुझे जाने दो, कल जो तुम कहोगी वही करूँगा." . इन दे.नों की इस बातचीत को सुन कर क्रोधवश राजा विक्रमादित्य हाथ में तलवार लेकर घर के दरवाजे पर तैयार होकर खडे हो गये, लेकिन उनने मन में विचार किया, "इन दानों को मारने से मुझे क्या लाभ होगा? बल्कि प्राणीयों को मारने से निश्चय ही मुझे पाप लगेगा." / जब वह चोर दीवार में किये हुए छिद्र द्वारा कष्ठ से जाने लगा तो उसे रत्नमंजरीने कहा, " तुम घरके दरवाजे में होकर ही सुख से जाओ.' जब वह दरवाजा खोला तो थोर उसमें से जाने लगा. इतने में अकस्मात् किंवाड गिर जाने से एकाएक वह चोर वहीं मर गया. कहा है कि-. . द्रौपदी वचन से सौ कौरवों के वंश की मूल का नाश हो गया. सुग्रीव को मारने के लिये आतुर वाली अपनी स्त्री तारा द्वारा मारा गया, सीता के प्रति आसक्त होने के कारणः / त्रिलोकविजयी रावण मृत्यु को प्राप्त हुआ. प्रायः स्त्रो वचन के प्रपंच में पडे हुए अथवा आसक्त सभी नष्ट होते है.'४ : * द्रोपद्यावचनेन कौरवशत निर्मूलमुन्मूलितम् ; सुप्रीवस्य वधायमोहमतुली लं) वाली हतस्तारया. सीतासक्तमनाखिलोकविजयी प्राप्तो वध रावणः; . प्रायः स्त्रीवचनप्रपंचविरतः सर्व क्षय यास्यति // स. 11/117 // P.P.AC. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust