________________ का शिवगंज हुआ, शिवगंज-मारवाड से विहार कर सिरोही, जावाल, जीरावळाजी, आबु, भिलडीआजी, चारुप, पाटण आदि तीर्था की यात्रा करते करते श्री शंखेश्वरजी होकर वि. स. 2011 की साल मेरा पू. गुरुदेव की निश्रामें अमदावाद आना हुआ, साहित्य संबंधी अनेकानेक प्रवृत्तियों के कारण समय बितता गया और यह विक्रमचरित्र छपवाने का कार्य में विलब होता ही रहा. यकायक वि. स. 2012 की साल में शरीर में “लों प्रेशर" की बिमारीने आक्रमण किया. उस से औषध उपचार करते रहे और इसी बिच विक्रमचरित्र का अधुरा कार्य हाथमें लेने का निर्णय कर आगे का कार्य आरंभ किया और देवगुरुकी असीम कपासे निर्विघ्नरूप से वह कार्य आज पूर्ण हुआ और यह ग्रंथ सुचारु रूप में छपवाकर प्रकाशकने वाचक के करकमल में रसास्वादके लिये सादर प्रस्तुत किया. कर इस पुस्तक का संयोजन कार्य किया है, मूलग्रन्थ में कहां कहाँ लोकों की पुनरुक्ति है, वहां पर थोडा सा संक्षिप्त जरूर किया है, प्राकृत गाथा भी बहुत आती है, उसी का भावदर्शक अनुवाद के लिये कहीं कहीं संस्कृत श्लोक भी पुनः अवतरित है, इसी कारण कोई जगह पर उसका अनुवाद छोड दिया गया है, सभी प्रकार से मूल ग्रन्थ के साथ पूर्ण लक्ष रखा गया हैं, ऐसा होते हुए भी छद्मस्थ शुलभ मतिभ्रमसे या तो मेराअल्पाभ्यास के कारण अनजान में किसी भी प्रकार के कुछ Jun Gun Aaradhak Trust ... P.P.AC.Gunratnasuri.M.S... .....