________________ साहित्यप्रेमी मुनि निरञ्जनविजय संयोजित - करण यदि समृद्ध हो तो भी उस के आश्रितो को क्या लाभ ? क्यों कि उन्हें इस की समृद्धि से कोई लाभ या फल प्राप्त नहीं होगा, किंशुक-पलाश के फलने पर भी भूखा तोता उस के फलों को क्या करे ? तोता भूखा होने पर भी पलाश के फल का भक्षण नहीं करेगा. धनी होने पर भी जो दान नहीं कर सकते उन्हे मैं महा दरिद्रो में भी अग्रगण्य मानता हूँ. क्यों कि जो समुद्र कीसीकी प्यास नहीं बुझा सकता वह जल रहित (मरुभूमि) के समान ही है. जगत में पाँच प्रकार के मुख्य दान है. अभयदान, सुपात्रदान, अनुकंपादान, उचितदान और कीर्तिदान. इन में अभयदान व सुपात्रदान ये दोनो ही मोक्ष सुख को देनेवाले या कर्मो से मुक्ति दिलाने वाले है, बाकी तीन प्रकार के दान भोग सामग्री देनेवाले है. - किसी के पास धन, साधनसामग्री होती है, किसी के पास चित याने उदार दिल होता है, और कहीं अन्यत्र चित व वित्त अर्थात् मन-भावना व धन दोनों होते है. लेकिन धन, मन, और सुपात्र दान का संयोग ये तीनो तो किसी पुण्यवान् व्यक्ति को ही प्राप्त होते है.x . X केसि चि होई वित्तं चित्तमन्नेसि उभयमन्नेसि / * चित्तं बित्तं पत्तं तिन्नि वि केसि च धन्नाण // स. 11/21 / / P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust