________________ साहित्यप्रेमी मुनि निरञ्जनविजय संयोजित 459 ___ ऋण, दुर्भाग्य, आलस, भूख, और अधिक सन्तान ये पाचो चीजें दरिद्रता के साथ उत्पन्न होती हैं तथा साथ ही उसका नाश होता है, अर्थात् ये पाँचो दरिद्रता के साथ ही रहनेवाली है. और भी कहा है कि, हे पुत्र! तू ऋण मत करना. क्यों कि व्याधि या रोग इसी भव में और पाप कर्म परभव में दुःख देते है. लेकिन ऋण तो इस भव में या परभव में दोनो ही जगह दुःखदायक होता है. इस लिये समझदार व्यक्ति को चाहिये कि कोई प्रकार का ऋण नहीं करना चाहिये. इस प्रकार का विचार कर वे तीनों ही मित्र उस स्थान को छोड . कर लक्ष्मीपुर नामक एक रमणीय नगर की ओर जाने के लिये रवाना हुए. चलते चलते रास्ते में एक सुंदर सरोवर के किनारे पहूँचे. वहां वे तीनों आराम के लिये ठहर गये, और आराम के बाद अपने साथ लाया हुआ भोजन करने के लिये बैठे, उसी समय वहां पर दो मुनि महाराज दूर से आते हुए दिखाई दिये. जिन का शरीर तपस्या से कृश हो गया था. चंद्ने अपने साथीओं से कहा, "अपने सद्भाग्य से ही ये दोनो पूज्य महात्मा पधारे है, अतः शुद्ध भावना से इन दोनो मुनिराजों को शुद्ध दान देना चाहिये. जैसे कि, 'ज्ञानदान से मनुष्य ज्ञानवान् , अभयदान से निर्भय अन्नदान से हमेशा सुखी तथा औषधदान से वह निरागी बनता है. लेकिन साधनसंपन्न होने पर भी दान न देने P.P.AC. Gunratnasuri M.S. Sun Aaradhak Trust