________________ 428 विक्रम चरित्र दिन सदा अंधा ही रहता है.४ चन्द्रसेन घूमता हुआ उसी देव मंदिर में आ पहूँचा, जो कि उस मंदिर में ब्राह्मण सोया हुआ था. चन्द्रसेनने उस ब्राह्मण को दूसरी जगह जाने को कहा, उस पर ब्राह्मणने कहा, "मुझे रात में कुछ दिखता नहीं, मैं रतांध हूँ, इस समय में कहाँ जाऊँ ? " तब चन्द्रसेनने अपने नौकर द्वारा दीपक सहित उस ब्राह्मणको पासके ही भीमयक्ष के मदिर में पहूँचा दिआ, और उसी मंदिर में दीपक को रख कर चन्द्रसेन का नौकर अपने स्थान लौट गया, वह ाह्मण भी शान्ति से वहां सो गया. जब मृगावति दूसरी बार मोदक का थाल लेकर चन्द्रसेन को मिलने के लिये आ रही थी, तब दूरसे भीमयक्ष के मंदिर में दीपक का प्रकाश देख कर वह वहां पहूँची, वहां वह ब्राह्मण एकान्त में सोया हुआ था. उस को चन्द्रसेन की भ्रान्ति से जगा कर कहा, “हे प्रिय ! मोदक खाओ.' वह ब्राह्मण उठा और हाथ में एक मोदक लेकर खाने लगा, विशेष आग्रह करने पर भी उसने खाने से इन्कार कर दिया, क्यों कि उस विप्रका पेट पहले से ही भरा हुआ था. मृगावतीने धीरे धीरे उस के समीप जाकर थोड़ा वातो x दिवा पश्यति नो घूकः काको नक्तं न पश्यति / अपूर्वः कोऽपि कामान्धो दिवा नक्त न पश्यति // स. 10/523 // P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust