________________ 426 विक्रम चरित्र - - ज्योतिषीने प्रश्नलग्न पर विचार कर और हस्तरेखा को देख कर कहा, “हे महाशय ! आप तीन भाई, एक बहिन और पांच सुंदर स्त्रीयों के स्वामी है." उस ब्राह्मण के सत्यतापूर्ण वचन सुन कर चन्द्रसेन बहुत प्रसन्न हुआ और उसने उस ब्राह्मण से कहा, "हे विप्रदेव ! इस खेतसे आप अपनी इच्छ'नुसार मुंग ले लीजिये." ब्राह्मणने अपने से उठाया जा सके उतने मुंग बांधा पश्चात् उसे उठाकर वह वहां से रवाना हुआ, रास्ते में ही संध्या हो गयी, तब वह ब्राह्मण वीरपुर नगर के निकटस्थ किसी देवमादिर में रात्रि बिताने के लिये रह गया. गंगादास पुरोहित की पत्नी मगावती प्रथम से ही चन्द्रसेन कोटवाल से कामासक्त थी, इस लिये पूर्व संकेतानुसार मगावती रात्रि के समय मोदक-लड्डु का थाल भर कर, उसी देवमंदिर में आई, और ये सोनेवाला चन्द्रसेन ही है, जैसा समझ कर सोया हुआ उस जोषी ब्राह्मण को प्रेम से जगाया, और अच्छी तरह मोदक खिलाये, दिनभर का भूखा ब्राह्मण मौन धारण कर शान्ति से पेटभर मोदक मिल जाने से आति प्रसन्न हुआ. पर एक थालभर मोदक खा जाने से मृगावती को आश्चर्य हो रहा था. उस में उसने उसके अङ्ग का स्पर्श करा, स्पर्श करते ही उसका शरीर को सुखी और कहा चमड़ी होनेका अनुभव हुआ, इस से उसे पता चला कि यह तो कोई अन्य ही पुरुष हैं, चन्द्रसेन नहीं हैं. P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust