SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 50
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 5.0 उस की वहाँ चाह.” इस उक्ति अनुसार कराल कालने इस अर्धविकसित कलिका को कवलित कर लिया, और संवत 2009 कार्तिक वदी 6 के दिन आप स्वर्ग सिधार गये, सारा ग्राम शोकाकुल हो उठा. युवक समाज से खलबली मच गई. ___ आज थी उन की याद कर विरामीवासी जनता श्रद्धा के * आंसु प्रकट करती है. / आपकी धर्मपत्नी सुखीवहन सुशील एवं धर्म प्रेमी -- सन्नारी है, जीवन में धर्म क्रियादि में भावनाशील है. उपधान, * अट्ठाई और वरसीतप आदि कई तपस्या की है और सदा ही ' सादाई और धर्म परायणशील है. ऐसे नररत्न नवयुवक की स्मृति में शाह हीराचंदजीने : “विक्रमचरित्र" प्रकाशन में 500 रु. की सहायता प्रदान कर ज्ञान प्रचार का पुन्य-श्रेय प्राप्त किया है. श्रीमान जेठमलजी हीराचंदजी ये दोनों बांधवों अपनी सहज उदार वृत्ति से धर्मकार्य में समय समय पर धन व्यय करते ही रहे है, विरामी गांव के जिनमदिर में श्री कानराजजी की स्मृति-निमित्तक आरसपहान के महातीर्थो के मनोहर पट्ट करवाये और श्री संघ को भेट कीये है तथा आत्मोन्नतिकारक श्री उपधान की तपस्या भी अपने ही गांव में श्री संघकी निश्रा में अपनी ओर से वि. संवत 2011 की साल में कराई और शासन शोभा में वृद्धि कर अच्छा धव व्यय करके पुण्यभागी बने. जिस तरह आज तक धर्मकार्य में यथाशक्ति धन व्यय करते आये रसी तरह धर्मभावना नवपल्लवित रखें यही एक शुभकामना. -प्रकाशक P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gurt Aaradhak Trust
SR No.036483
Book TitleSamvat Pravartak Maharaja Vikram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNiranjanvijay
PublisherNiranjanvijay
Publication Year
Total Pages754
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size455 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy