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________________ ..47 . . . . . . . . प्रकरण 67 . . . . . . . . . . . . पृ. 635 से 658 विक्रमादित्य की सभा में जादुगर की इन्द्रजाल तीसरी चामरधारिणीने एक वैतालिक की कथा कही, जिस में वैतालिकने अद्भुत चमत्कार दिखाया, महाराजा विक्रमादित्यने उन को पांडय देश से आई हुई भेट दे दी. चौथी चामरधारिणीने एक कृतघ्न ब्राह्मण की कथा सुनाई. महाराजाने परकाय प्रवेश की विद्या प्रदान करवाई. उस कृतघ्न ब्राह्मणने उपकार करनेवाले पर अपकार किया, तथापि अपकार करनेवाले पर भी महाराजाने उपकार किया. इत्यादि चार चामरधारिणी की रोमांचकारी कथा सुनकर विक्रमचरित्रा और सारी सभा आनंद अनुभव करने लगी. विक्रमचरित्रा का तीर्थाधिराज श्री शत्रुजय की यात्रा के लिये जाना, वहां जावडशा द्वारा उस महागिरिवर का उद्धार करना उस में विक्रमचरित्र का सहयोग होना इत्यादि अद्भुत वृत्तान्तो के साथे चरित्र पूर्ण होता है, और अंत में विक्रम और जैन साहित्य के बारे में निबंध दिया गया है. શ્રી તત્ત્વાર્થસૂત્ર સાથે -તેના અભ્યાસકોને ખાસ ઉપયોગી. મૂળ સૂત્ર, નીચે હરિગીત છંદમાં કાવ્યરૂપે, પૂ. ઉપાધ્યાય શ્રી રામવિજયજીગણિ મ. કૃત ગુજરાતી અનુવાદ અને તેના ઉપર સુંદર વિવેચન અને ખાસ ઉપયોગી પ્રશ્ન શ્રેણી–યુત સુંદર છપાઈ તથા સુઘડ પાકું બાઈન્ડીંગ छता प्रत्यार भाटे 6. 3. 3-0-0 प्राप्तिस्थान- (2) 5. मुलास आतिहास (1) मासुमा ३चनाथ // है. हायामाना, रतनपण, અંબાજીના વડ પાસે–ભાવનગર અમદાવાદતે સિવાય પ્રસિદ્ધ જૈન બુકસેલરને ત્યાંથી પણ મલશે. P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
SR No.036483
Book TitleSamvat Pravartak Maharaja Vikram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNiranjanvijay
PublisherNiranjanvijay
Publication Year
Total Pages754
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size455 MB
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