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________________ वापस आया, उसी समय महाराजा सोये हुए थे. शतमति सांपकी राह देखने लगा. उतने में काला भयंकर सांप आया. शतमतिने उसे मार डाला, और एक बर्तन में उस के टुकडे रख कर बर्तन को दूर रख दिया, सांपके मुँह से कुछ जहर के बुंद रानी की छाती पर गिरे थे. उसको शतमति अपने हाथों से पोंध्ने लगा, उसी समय महाराजा की आंख यकायक खुल गई. शतमति का कृत्य देखा, और मारने का विचार हुवा, किन्तु शांत रहे.. समय पूर्ण होते ही उसको विदा किया, दूसरा अंगरक्षक 'सहस्त्रमति' वहां आया, महाराजाने उसको शतमति को मार डालने की आज्ञा दी. सहस्त्रमति शतमति के वहां गया. उसी समय शतमति अपने घर पर नाटक करवा रहा था और दान दे रहा था. उसका पवित्र चहेरा देख कर शतमति निर्दोष है असा मान लिया, वापस आया और महाराजा को ब्राह्मणी और नेवला की कथा कह कर शांति से काम लेनेका कहा. या सुनाइ. उसका समय पूर्ण होते ही उस को विदा किया, तीसरा अंगरक्षक 'लक्षमति' आया, उस को भी महाराजाने शतमति को मारने की आज्ञा दी, लक्षमतिने महाराजा को श्रेष्ठी पुत्र सुदर की कथा कहते हुए चार पंडितो की तथा शशक और सिंह की कथा सुनाई. ___ उसको भी समय पूर्ण होते ही विदा किया, चौथा अंगरक्षक कोटि-. मति पहरे पर आया, महाराजाने उसको भी शतमति को मारने की आज्ञा दी. कोटीमतिने केशव की कथा महाराजा को शांत करने के लिये कही. उस का समय पूर्ण होते ही वह गया. प्रातःकाल होते ही महाराजाने कोटवाल को बुलाया, शतमति को फांसी * और सहस्त्रमति, लक्षमति, कोटीमति उन तीनों को देशनिकाल की सजा करने को उस से कहा, कोटवालने महाराजाने जो कहा सो किया. शतमति को जब फांसी पे ले जा रहा था तो शतमतिने महाराजा से मिलने की विज्ञप्ति की, कोटवाल शतमति को महाराजा के पास ले / P.P.AC. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
SR No.036483
Book TitleSamvat Pravartak Maharaja Vikram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNiranjanvijay
PublisherNiranjanvijay
Publication Year
Total Pages754
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size455 MB
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