________________ 279 साहित्यप्रेमी मुनि नरञ्जन विजय संयोजित को दुःख बिना बुलाये ही आता हैं, वैसे ही सुख भी बिना बुलाये प्राप्त हो जाता है; इसलिये अब ज्यादा-चिन्ता करने जैसी बात नहीं है; हे बालिके ! मैं निर्भय होकर वैसा ही कार्य करंगा, जिससे तुमको वह दुष्ट राक्षस क्षणमें ही छोड़ भागेगा. यदि तुमकों उस राक्षस को मारने का कोई उपाय मालूम हो, तो कहो ?" ऐसा राजा के पूछने पर चन्द्रावतीने बताया, "वह बड़े बड़े देवताओं से भी दुःसाध्य है वह अपने इष्ट 'देव की पूजा-पाठमें बैठता और पुष्पों से पूजा करता है; उस अवसर पर अपना वज्रदण्ड पृथ्वी पर रख कर, स्नान आदि से पवित्र हो कर पूजा पाठ करने बैठता है, उस समय उसको ध्यान से कोई देवता या राक्षस भी विचलित नहीं कर सकता हैं, और उस समयमें उससे पूछने पर भी वह किसी से नहीं बोलता है; यदि उसी समय कोई मनुष्य उस के मस्तक पर जोर से प्रहार करे तो, उस की मृत्यु अवश्य हो जायँ. कदाचित् वह राक्षस देवकी पूजा करके शीघ्र उठ जाय, तब तो इन्द्र भी उस को जीत नहीं सकते. दूसरे मनुष्यों की क्या बात करें !" यह सब बात सुनकर राजा मनमें प्रसन्न हुआ. - राजाने कहा, “राक्षस इस प्रकार पृथ्वी पर दण्ड को रख करके दृढ भावसे देवपूजा करता है, तो मेरा मनोरथ अवश्य सिद्ध हो ही जायेगा." इतनेमें राक्षस का आने का समय होने आया, तब राजकन्या बोलो, "हे नरवीर ! राक्षस अभी आ जायगा, इस लिये आप गुप्त प से कुछ समय तक छिप जाइए.' भीम राक्षस से युद्ध का आहवान्:- "तुम डरो नहीं." इस प्रकार उस राजकन्या से कहकर राजा P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust