________________ * 238 विक्रम चरित्र Wate SENA LER CORDER : अग्निवैतालके कंधेपे बेठकर विक्रम सिद्ध सीफोत्तरी पर्वतकी ओर जा रहा है चित्र नं. 1 इन्द्र की सभामें अनेक देवता, चौंसठ योगिनियाँ, बावन वीर, अनेक भूत, प्रेत और विचित्र रूपको धारण करनेवाले राक्षस आदि से भरी हुई थी। सभी के बीचमें देवदमनी सुंदर श्रृंगार सज-धज और हाव-भाव समय महाराजाने अग्निवैताल को कहा कि-किसी भी तरहसे इसको क्षोभित-व्यांकुल करो, तवं अग्निवेताल-भ्रमर. बनकर नृत्य करती हुई देवदमनी के मस्तक पर से पुष्पको पांवके झांझर पर मिराया, अकस्मात् फूलका गिरना तथा भ्रमर को देख कर देवदमनी क्षोभित खलबली-व्याकुलं हो गई। देवदमनी का सुंदर नृत्य और मनोहर गीत सुनकर- इन्द्र आदि समस्त सभासद् प्रसन्न हुए; ईस प्रकार के मधुर आलाप के साथ मनोहर P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust