________________ पवक्रम-चरित्र द्वितीय भाग 157 उस विप्रकन्या ने कहाकि 'हे राजपुत्रि! क्रोध में आकर स्त्रियाँ भी मिथ्या भाषण आदि अनेक असत् कार्य क्या नहीं फरती हैं ? ___ यह बात सुनकर राजपुत्री ने कहाकि 'हे सखी ! मैं क्या करू ! मनुष्य के प्रति द्वष मुझको नहीं जाता है।' ___ पुनःविप्र कन्या ने कहाकि 'हे राजपुत्रि ! वायु के वेग से जैसे मेघ समूह नष्ट हो जाता है / उसी प्रकार क्रोध से सव पुण्य कार्य नष्ट हो जाते हैं। ____ इधर उधर नगर की शोभा देखकर वह ब्राह्मण राजा के समीप आकर बोलाकि "मैं जो अपनी कन्या आपके यहां रख गया था वह कन्या अब मुझको देदे।।" तब राजाने अपनी दासी को विप्रकन्या को लाने के लिये अपनी कन्या के पास भेजा और वहाकि 'उसका पिता आगया है इसलिये उसको यहां ले आओ।' वहाँ राजपुत्री ने कहाकि 'मैं इस विप्रकन्या का वियोग क्षण मात्र भी नहीं सहन कर सकती हूं।' वह दासी राजा के पास खाली लौट आई और उसने राजा को राजकुमारी का अभिप्राय सब कह सुनाया / ब्राह्यण ने यह सुनकर कहाकि 'हे राजन् ! मेरी कन्या शीघ्र दे दीजिये / नहीं तो मैं यहाँ अपनी आत्म हत्या कर डालूगा / ' . राजा स्वयं पुत्री के समीप गया और उस विप्रकन्या को लाकर उसने ब्राह्मण को देदी / ब्राह्मण अपनी कन्या लेकर कहीं अन्यत्र चल दिया ! Jun Gun Aaradhak Trust P.P. Ac. Gunqatnasuri M.S.