________________ 80 विक्रम- चरित्र द्वितीय भाग पद्मावतीको ढूढने के लिये शुकराज का गमन तब शुकराज मधुर वचनों से उसको धीरज देकर तथा आश्रम में उसको रखकर पद्मावती को आस पास में ढूढने के लिये वहां से शीघ्र चल दिया / परन्तु आश्रम के पास वाले जिनप्रसाद के पीछे एक मनुष्य को रुदन करते हुए देखकर शुकराज ने उससे पूछा कि 'तुम कौन हो ? तथा कहां से यहां आये हो ?' ___तब उसने कहा कि, मैं आकाश चारी हूँ, और वायुवेग मेरा नाम है / पृथ्वी को देखने के लिय वैतादयगिरी पर आये हुए हैं 'गगन वल्लभ' नाम के नगर बरोबर है से भला था / तथा चम्पापुरी के राजो की कन्या को लेकर आकाश मार्ग से मैं आ रहा था जैसे ही मेरा विमान यहां मंदिर के शिखर पर पहुंचा और अकस्मात रुक गया / इस विमान से प्रथम तो एक स्त्री गिर गई, और बाद में वह राज कन्या भी गिर गई, पश्चात् मैं भी यहां गिर गयो हूं। इसका कारण कुछ भी मुझे तो ज्ञात नहीं हो रहा है कि ऐसा क्यों हुआ ?' ' वायुवेग को आश्रम में लाना _____ तब शुकराज कहने लगा कि "हे वायुवेग ! इसी तीय के * प्रभाव से तुम्हारा यह विमान रुका तथा तुम्हारा पतन हुआ है / " इसके बाद उस वायुवेग को लेकर शुकराज जिन प्रासाद में गया तथा भक्ति भाव पूर्वक श्री जिनेश्वर देव को दोनों ने , P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust