________________ 54] * रत्नपाल नृप चरित्र * कूदता हुआ संशय युक्त हो गया, इस कारण देवी ने इसे विकलांग बना दिया। अब यह निराश और निरुत्साह होकर अपने घर चला जायगा। क्योंकि सिद्धि सत्व से ही होती है। सब ही कार्य सत्व से 'मनोवल से प्रतिष्ठित होते हैं / इस प्रकार कन्या के वचनों को सुनकर सत्वशाली उस नृप रत्नपाल ने एकदम उस अग्निकुण्ड में छलांग मार दी। सत्व से उसका शरीर सुधामय हो गया। उस अग्निकुण्ड में स्नान करने से वह राजा वज्र शरीर वाला हो गया। उस समय सब वृत्तान्त के ज्ञात होने पर विश्वावसुगन्धर्वराज वहां आया र प्रसन्न होकर महोत्सव के साथ दोनों कन्याओं का पाणिग्रहण रत्नपाल नृप के साथ कर दिया। दोनों पत्नियों की प्राप्ति से प्रसन्न हुआ नप अपने नगर में आ गया और उस द्यूतकार को बीस लाख मुहर दी / पहिले जो घतकार आते और जाते अन्याय से प्राप्त धन से पूर्ण और रिक्त होता था वही न्यायमार्ग से राजा द्वारा प्राप्त हुए धन से प्रतिदिन / वर्द्धमान ऋद्धि वाला हो गया। यह न्याय का फल स्पष्ट है। उस उत्तम चरित्र वाले नप के अनुभूत उपदेशों से वह छतकार व्यसन से निवृत्त हो गया। ___ एक वार महीपति रत्नपाल शीतल नदी के प्रवाह में जलक्रीड़ा करने की इच्छा से नाव पर आरूढ़ हुआ। अवा P.P. Ac. Gunratnasuri M:S. Jun Gun Aaradhak Trust