________________ * तृतीय परिच्छेद * यह जानकर उसने राजा के पास जाकर सारा वृत्तांत निवेदन कर दिया / कौतुक से राजा भी तत्काल उसके साथ वहां गया और दोनों कन्याओं और मनुष्य को देखकर कहने लगा-मैं रत्नपाल नप हूं। यह कौन है और तुम दोनों कौन हो तथा यह अग्निकुण्ड क्यों है ? इन सबका ठीक ठीक निर्भय होकर उत्तर दो। इस प्रकार राजा के पूछने पर एक कन्या बोली-हे राजन् ! हम दोनों कन्यायें गन्धर्वराज विश्वावसु की पुत्रियाँ हैं और देवसेना तथा गन्धर्वसेना नाम से हम प्रसिद्ध हैं। क्रमसे सुन्दरता रूपी कंद को उद्भेदन करने वाले मेघ के समान यौवन को प्राप्त हुई हैं। देदीप्यमान अतुल ज्वालायुक्त अग्नि में मन्त्रपूर्वक घी की आहुति आदि से तथा मन्त्रतन्त्र और औषधि के बल से भी हम किसी से स्तब्ध नहीं की जा सकतीं। यमराज के मुख की तरह भयंकर अग्नि में जो उत्तम पुरुष स्नान करेगा, वह सत्वशाली आपकी पुत्री का पति होगा और वह शत्रुओं से अजेय तथा भरतार्द्ध का चक्रवर्ती होगा। ऐसे दैवज्ञ के वचन से प्रेरित होकर पिता ने हमें यहां छोड़ा है। उस सत्वशाली की परीक्षा करने के लिए मेरे पिता ने विद्या द्वारा हीन सत्व से 'कायर से' न देखने योग्य इस अग्निकुण्ड को बनाया है। यह विद्याधर हमें प्राप्त करने के लोभ से इस अग्निकुण्ड में P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust