________________ * तृतीय परिच्छेद * नक पीठ के प्रबल वायु से प्रेरित वह नाव वायु वेग से पूर्व दिशा की ओर चलने लगी। उस समय राजा ने दोनों किनारों पर बसे हुए गांव और बगीचों को चक्र पर चढे हुए की तरह घूमते हुए देखा / दो घण्टों के बाद वह नाव पूर्व समुद्र की तीर को पाकर स्वयं ही स्खलित हुई की नई ठहर गई और नृप तट पर उतर गया। वहां किसी मनुष्य ने आकर विनय पूर्वक कहा-हे राजन् ! किञ्चित्मात्र भी आप खेद मत करना कि किस जगह और देश में आ गया हूँ। क्योंकि 'आप जैसे महानुभाव के आगमन से सब लोगों का भविष्य सुखमय होगा।' राजा उससे कहने लगा कि यहां भविष्य सुखमय होगा' यह बात तूने कौन से निमित्त से या कौन शकुन से जानी है ? राजा के इस प्रकार पूछने पर वह सत्यवादी कहने लगा-मैं उत्तरकाल को जानता हूँ। हे सत्वनिधे ! मैं जो आपको सत्य वृत्तान्त सुनाता हूँ, उसे आप सुनिये / यहां समीप ही रहे हुए रत्नपुर नामक नगर में निवास करता हुआ रत्नसेन नामक राजा दस करोड़ गांव से मण्डित पूर्व देश को भोगता है। इस राजा. के 11 लाख मदोन्मत्त हाथी हैं, तीस लाख रथ, दस लाख घोड़े, दस करोड़ स्त्रिये, इस प्रकार सब आनन्द है। परन्तु कर्मानुभाव 1. तरह P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust