________________ 50 ] * रत्नपाल नृप चरित्र * समय में उसे कुछ कहने की इच्छा से देवी ने जीभ निकाली / तब उसने कहा कि हे चण्डी! तू भी इस पुए के टुकड़े को खा। ऐसा कहकर उसने उसकी जीभ पर पुए का टुकड़ा रख दिया। उसने भी माया से खा लिया। तत्र उसने उसकी निकली. हुई जीभ देखकर कहा कि हे चण्डी ! तू बड़ी लोभिन है, इसलिए तूने फिर लम्बी जीभ निकाली है। ऐसा कह कर उसने जीभ पर थूक दिया। देवी ने विचारा कि मैं उच्छिष्ट जीभ को कैसे मुख में डालूं ? यह सोचती हुई वह वैसे ही दुखित होकर बैठी रही। प्रातःकाल . में चण्डी को भयानक देखकर लोग आपस में कहने लगेयह उत्पात अनर्थकारी होगा। यह कहकर उन लोगों ने उत्पात की शान्ति के लिए शान्तिक कर्म कराये / तो भी देवी उच्छिष्ट जीभ मुख में न डालती थी। तब लोगों ने यह पटह वजाया कि जो इस उत्पात को शान्त करेगा, वह सौ सुवर्ण आज ही पावेगा / .. उस समय अपने सामने ही उत्पन्न हुए उत्पात को जानते हुए उस धूर्त ने पटह को स्पर्श करके सौ मुहरे ग्रहण करली। तदनन्तर सब लोगों को हटा कर एकान्त में देवी के मन्दिर में जाकर बड़े पत्थर को हाथ से उठाकर देवी से निष्ठुर वचन कहने लगा। हे रण्डे चंडी ! इसी वक्त तू अपनी जीभ को मुख में वापिस ले ले, नहीं P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust