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________________ P.P Ad Gurrainasuri MS | हठ न करें। यदि मैं वहाँ पहुँच गयी, तो मेरा-आपका वियोग सम्भावित है।' चन्द्रप्रभा के निवेदन पर राजा हेमरथ को विश्वास न हुआ। उसने चंद्रप्रभा से कहा-'हे मूढ़मते! तू ऐसा कुवाच्य क्यों कहती? तुझ जैसी हजारों सुन्दरियाँ तो राजा मधु की दासी हैं।' दूरदर्शी रानी ने उत्तर दिया- 'हे स्वामिन् ! जैसी आप को || 66 इच्छा / मैं ने तो अपनी समझ से उचित परामर्श दिया है। भविष्य की घटनाओं से अपने-आप मेरी आशङ्का का औचित्य प्रकट होगा।' इतना कह कर वह मौन हो गयी। किन्तु सरल चित्त राजा हेमरथ के विचार न बदले। उसने कहा- 'हे प्रिये! शुभ-कार्य में विकल्प न करो। हमारा अयोध्या गमन अत्यन्त आवश्यक है।' इस प्रकार समझा-बुझा कर राजा हेमरथ ने रानी चंद्रप्रभा को सन्तोष दिलाया एवं उसी दिन दास-दासियों के साथ अयोध्यापुरी के लिए प्रस्थान कर दिया। प्रस्थान करते समय अनेक अपशकुन हुए। किन्तु - 'विनाशकाले विपरीत बुद्धिः' के अनुसार राजा हेमरथ ने उधर ध्यान नहीं दिया। ____ कई दिवसों की यात्रा के पश्चात् राजा हेमरथ अयोध्या के समीप आ पहुँचे। महाराजा मधु ने अपने परिवार के सङ्ग आकर राजा हेमरथ का स्वागत किया। एक सुन्दर महल में उनके निवास की व्यवस्था हुई। राजा हेमरथ एवं रानी चंद्रप्रभा के आदर-सत्कार की तो बात हो क्या थी ? अन्य राजाओं का भी उचित सम्मान हुआ। इस समय राजा मधु ने अपने उद्यान को सुन्दर रूप से सजवाया। यह सारा कृत्य चंद्रप्रभा को फँसाने के लिए किया गया था। ठीक ही है, ऐसा कौन-सा कार्य है, जो माया के बल पर सिद्ध न किया जा सके ? उद्यान की शोभा अपूर्व हो गयी। पराग-रज से सुगन्धित कोयलों की मतवाली कूक एवं भ्रमरों के मधुर झङ्कार से उद्यान गूंजने लगा। पाषाण-खण्डों से रचे हुए विभिन्न कृत्रिम पर्वतों से उद्यान की शोभा द्विगुणित हो गयी। इसके अतिरिक्त उसमें चन्दन के पङ्क एवं कर्पूर-केसरादि सुगन्धित द्रव्यों से पूरित विभिन्न वापिकाएँ निर्मित को गईं। सुवर्ण एवं रजत के तारों से बने रङ्ग-बिरंगे बन्दनवारों से उद्यान को सशोभित किया गया। जब उद्यान की सजावट पूर्ण हो गयी. तब राजा मध अपने निवास तथा सामन्त नरेशों के साथ क्रीडा के लिए वहाँ पधारे। उद्यान की मनोहारी शोभा देखते ही बनती थी। लताओं के रमणीय पत्र-पुष्पों की सुगन्ध, भ्रमरों के गुञ्जन, कोयलों की मधुर-कूक तथा मञ्जरी-युक्त आम्र के वृक्षों को देख कर यही प्रतीत होता था Jun Gun Aaradhak Trust
SR No.036468
Book TitlePradyumna Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSomkirti Acharya
PublisherJain Sahitya Sadan
Publication Year2000
Total Pages200
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size275 MB
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